एक्सक्लूसिव : मुख्यालय में गुम इंस्पेक्टरों के अगले प्रमोशन की आस, ज्येष्ठता सूची मामले में ट्रिब्यूनल पहुंचे 90 इंस्पेक्टर 


ज्येष्ठता सूची निर्धारित न करने के मामले में सिविल पुलिस के लगभग 90 इंस्पेक्टर उत्तराखंड पब्लिक सर्विस ट्रिब्यूनल पहुंच गए हैं। लंबे इंतजार के बाद वर्ष 2016 में पदोन्नत हुए इन इंस्पेक्टरों को अब अगला प्रमोशन न होने की आशंका है। चार साल से ज्यादा समय बीतने पर भी इनकी वरिष्ठता सूची जारी नहीं की गई है। खास बात यह है कि ये इंस्पेक्टर कई स्तरों पर अपनी बात रख चुके हैं, जिसे सही ठहराया गया। बावजूद इसके कुछ नहीं हुआ।


 
दरअसल, इंस्पेक्टर पद पर प्रमोशन होने में पहले से ही नियमों को ताक पर रखा गया। सिविल और इंटेलीजेंस का संवर्ग एक होने के बाद भी सिविल पुलिस के सब इंस्पेक्टरों की वरिष्ठता को सबसे पहले 2014 में नजरअंदाज किया गया। उस वक्त इंटेलीजेंस के 21 सब इंस्पेक्टरों को डीपीसी कर पदोन्नत कर दिया गया। इससे 2002, 2000 और 1998 व 1999 आदि बैच के सीधी भर्ती वाले सिविल पुलिस के सब इंस्पेक्टर अपने से जूनियर के जूनियर हो गए। इसमें लगभग 90 इंस्पेक्टरों की वरिष्ठता प्रभावित हुई थी। 
इन बातों को लेकर सिविल पुलिस के इंस्पेक्टर आला अधिकारियों से भी मिल चुके हैं। उन्होंने 2015 में भी खुद के साथ नाइंसाफी को के बारे में बताया था। जनवरी 2015 में 2002 बैच के 33 पीएसी के प्लाटून कमांडर (सब इंस्पेक्टर) को दलनायक यानी इंस्पेक्टर पद पर पदोन्नति दे दी गई।


जबकि ये सब भी इंटेलीजेंस के सब इंस्पेक्टरों की तरह पीटीसी में मिले अंकों व नियुक्ति के समय से ही जूनियर थे। इतने लंबे इंतजार के बाद बारी आई सिविल पुलिस के सब इंस्पेक्टरों के प्रमोशन की तो वर्ष 2016 में इनका भी प्रमोशन कर इंस्पेक्टर बना दिया गया, लेकिन तब से अब तक सही ज्येष्ठता सूची जारी नहीं की गई। अब इन सिविल पुलिस के इंस्पेक्टरों को ट्रिब्यूनल से ही आस है।
2018 में भी नहीं की गई ज्येष्ठता निर्धारित 
वर्ष 2018 में पुलिस मुख्यालय ने इंस्पेक्टरों की सम्मिलित वरिष्ठता सूची जारी की थी। जानकारों के अनुसार 20 जनवरी 2018 को तैयार की गई इस सूची में सिविल पुलिस के दरोगाओं की वरिष्ठता को निर्धारित ही नहीं किया गया। यही नहीं सिविल पुलिस के लोगों का नाम इस सूची में शामिल भी नहीं किया गया। 


कानून व्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं पदोन्नत डीएसपी 


ज्येष्ठता सूची निर्धारित करने में हो रही देरी से इंस्पेक्टरों में रोष व्याप्त है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो डर यह भी सता रहा है कि सभी इंस्पेक्टर 15 से 20 सालों में रिटायर हो जाएंगे और कोई भी डीएसपी नहीं बन पाएगा। यानी उनकी यह ख्वाहिश मन में ही रह जाएगी।


जबकि सिविल पुलिस के इंस्पेक्टरों से डीएसपी बनने वाले अधिकारी कानून व्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। कारण है कि उनके पास फील्ड का काफी अनुभव रहता है, जिसका पुलिस को भरपूर लाभ मिलता है। जबकि अन्य संवर्गों से आने वाले डीएसपी के बारे में ऐसा नहीं माना जाता। 


सब सही मान रहे कर कोई नहीं रहा 


सूत्रों के अनुसार सिविल पुलिस के ये इंस्पेक्टर जिन अधिकारियों से मिले हैं उन्होंने मांग को जायज ठहराया है। यानी जो पहले हुआ उसे गलत बताया गया है लेकिन उनकी बात मानकर इसे जारी कोई नहीं कर रहा है। यहां तक की शासन के अधिकारी भी इस मामले को जायज बता चुके हैं। 


कुछ इंस्पेक्टरों ने मुलाकात की थी। उन्होंने अपनी सारी बात रखी। जो वो कह रहे हैं। उस बात पर गौर किया जा रहा है। जल्द ही इस मामले में बात की जाएगी। - अशोक कुमार, डीजी, कानून व्यवस्था



Sources:Agency News


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