क्यों भारतीय छात्रों में बढ़ रही है आत्महत्या की घटनाएं, हर घंटे एक छात्र मौत को लगाता है गले


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है। उपलब्ध डाटा के अनुसार पिछले 25 वर्षों में इस वर्ष में छात्रों की आत्महत्याओं की संख्या सबसे अधिक, 10,335 दर्ज की गई।



 


कानपुर के 28 वर्षीय बीटेक छात्र ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, केरल में नौकरी न मिलने की वजह से परेशान छात्र ने आत्महत्या कर ली। एमबीबीएस के छात्र ने एम्स की छत से कूदकर आत्महत्या की। ये ऐसी कुछ खबरों की हेडलाइन हैं जो बीते एक हफ्ते के अंदर अखबारों में छोटी सी जगह मिली। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है। उपलब्ध डाटा के अनुसार पिछले 25 वर्षों में इस वर्ष में छात्रों की आत्महत्याओं की संख्या सबसे अधिक, 10,335 दर्ज की गई। भारत में 1 जनवरी, 1995 से 31 दिसंबर, 2019 के बीच आत्महत्या की वजह से 1.7 लाख से अधिक छात्र अपनी जान गंवा चुके हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार इनमें से लगभग 52% पिछले एक दशक में रिपोर्ट किए गए थे, जबकि शेष 85,824 1995 और 2008 के बीच रिपोर्ट किए गए थे। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक ने अवसाद, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे और ड्रग्स की लत को सबसे सामान्य कारण के रूप में वर्णित किया।







रिपोर्ट के अनुसार मानसा न्यूरोसाइकाइट्रिक हॉस्पिटल के कंसल्टेंट मनोचिकित्सक डॉ. एमएस धर्मेन्द्र ने बताया कि मैकेनिज्म और सपोर्ट सिस्टम बेहद ही महत्वपूर्ण हैं। मानसिक बीमारियों के लिए आनुवंशिक प्रवृत्ति जैसे जैविक कारक भी एक भूमिका निभाते हैं। उच्च स्तर की प्रवृत्ति वाला व्यक्ति एक नैदानिक ​​बीमारी विकसित करने के लिए आगे बढ़ सकता है जो आत्महत्या या आत्महत्या के लिए एक जोखिम कारक बन सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे तनाव को कैसे संभालने में सक्षम हैं। 


2019 में छात्रों की आत्महत्या के मामले में सबसे अधिक संख्या देखी गई, इस श्रेणी में कुल आत्महत्याओं का 7.5% (1.39 लाख) था, जो 2017 में 7.6% की तुलना में मामूली कम है, जिसमें 9,905 मामले देखे गए थे। हालांकि, 2017 में आत्महत्याओं की कुल संख्या 2019 की तुलना में 7% कम थी। 2019 में एक राज्यवार विश्लेषण से पता चलता है कि सिर्फ पांच राज्य- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश - उस वर्ष 10,335 छात्रों की आत्महत्या के 44% से अधिक मामले आते हैं। बाल अधिकार कार्यकर्ता यह भी बताते हैं कि कई छात्र, विशेष रूप से 10 या 12 वर्ष की आयु से ऊपर के लोग, अपनी चिंता को दूर करने के लिए रास्ते खोजने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे तनाव प्रबंधन मुश्किल हो जाता है।


Source:prabha shakshi



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