बसपा के 6 विधायकों पर फंसे कानूनी पेच पर भाजपा की नजर


जयपुर: राजस्थान की राजनीति कानूनी मकड़ जाल में फंस गई है। एक राज्यपाल ने 14 अगस्त को विधानसभा का सत्र बुलाने की मंजूरी दे दी है तो विधायकों की खरीद फरोख्त के कई मामले जिला न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं। बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 विधायकों के प्रकरण में कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष तक को नोटिस जारी कर दिए हैं। इस बीच लगातार खबरें आ रही हैं कि दिल्ली में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता सचिन पायलट के सम्पर्क में हैं। ऐसे नेता चाहते हैं कि बगावती रुख छोड़ कर कांग्रेस संगठन को मजबूत करने का काम करें।


 


 सीएम गहलोत ने पायलट पर भले ही कितने भी आरोप लगाए हों, लेकिन अभी तक भी पायलट ने कोई जवाब नहीं दिया है। उल्टे 4 अगस्त को पायलट गुट के विधायक हेमाराम चौधरी, वेदप्रकाश सोलंकी तथा इन्द्राज गुर्जर ने बयान जारी कर कहा कि उनकी कांग्रेस संगठन से काई नाराजगी नहीं है। वे तो पार्टी में रह कर अशोक गहलोत के नेतृत्व का विरोध कर रहे हैं। यदि गहलोत को मुख्यमंत्री के पद से हटा कर अन्य किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो उनका विरोध खत्म हो जाएगा। यानि मौजूदा समय में कांग्रेस का विवाद सिर्फ अशोक गहलोत को लेकर है। सब जानते हैं कि गहलोत बहुत संवेदनशील नेता है और कई बार कह चुके हैं कि पार्टी हाईकमान ने मुझे बहुत कुछ दिया है। गहलोत की पार्टी के प्रति वफादारी और संवेदनशीलता को देखते हुए ही सवाल उठ रहा है कि क्या गहलोत मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे? यदि गहलोत मुख्यमंत्री का पद छोड़ते हैं तो कांग्रेस में पहले जैसी स्थिति हो जाएगी। 


 


हालांकि अभी अशोक गहलोत करीब 100 विधायक लेकर जैसलमेर के सूर्यागढ़ किले में बैठे हैं। लेकिन यदि बसपा के 6 विधायकों पर वोट डालने पर रोक लगती है तो फिर गहलोत के लिए सरकार बचना मुश्किल होगा। कांग्रेस के जो दिग्गज नेता दिल्ली में पायलट के सम्पर्क में हैं, उन्हें पता है कि यदि पायलट को कांग्रेस में बनाए नहीं रखा गया तो भाजपा वाले पायलट और उनके समर्थक 18 विधयकों को लपक लेंगे। इससे राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति कमजमोर होगी। कांग्रेस के नेता कभी भी नहीं चाहेंगे कि पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में जाएं। ऐसे कांग्रेस हाईकमान अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने पर विचार कर सकता है। यह सही है कि यदि हाईकमान कोई विचार करेगा तो अशोक गहलोत खुद ही मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे। गहलोत तभी तक मुख्यमंत्री हैं, जब तक हाईकमान का भरोसा है। भले ही गहलोत के पक्ष में कांग्रेस विधायकों का समर्थन हो, लेकिन गहलोत हाईकमान की इच्छा के बगैर एक मिनट भी सीएम की कुर्सी पर नहीं रहेंगे। 


 


जहां तक भाजपा का सवाल है तो भाजपा अभी बसपा के 6 विधायकों के प्रकरण पर नजर रखे हुए है। यदि बसपा विधायकों पर दब बदल कानून की तलवार लटकती है तो पायलट गुट पर भाजपा की पकड़ मजबूत रहेगी। फिर चाहे कांग्रेस के दिग्गज नेता कितना भी जोर लगा लें, लेकिन पायलट गुट को दिल्ली से बाहर नहीं जाने दिया जाएगा। 


Source :Agency news 


 


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