तानाशाही: नाजीवाद, फासीवाद और ‘मोदीवाद’

 


 




राज शेखर भट्ट


प्रधानमंत्री मोदी जी ने संसदीय दल की बैठक राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल को पास करवाने के लिए बहुमत का आंकड़ा दिखाया और 125 को मैजिक आंकड़ा बताकर बिल पास करा लिया। नागरिकता संशोधन बिल 2019 में केंद्र सरकार के प्रस्तावित संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए अवैध दस्तावेजों के बाद भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन नागरिकता संशोधन बिल का पूर्वोत्तर के राज्य के लोग विरोध कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ बता रहे हैं।


नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है। नागरिकता बिल 1955 के हिसाब से किसी अवैध प्रवासी को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती। अब इस संशोधन से नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव हो गया है। नागरिकता बिल में इस संशोधन से मुख्य रूप से छह जातियों के अवैध प्रवासियों को फायदा होगा। बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए अवैध दस्तावेजों के बाद भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत के प्रमुख विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार सीएबी के माध्यम से मुसलमानों को टार्गेट करना चाहती है। इसकी वजह ये है कि सीएबी 2019 के प्रावधान के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जाएगी। कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रही हैं। सरकार का तर्क यह है कि धार्मिक उत्पीड़न की वजह से इन देशों से आने वाले अल्पसंख्यकों को सीएबी के माध्यम से सुरक्षा दी जा रही है।


हालांकि, अगर पूरा भारत सड़कों पर उतर आया तो न पुलिस कुछ कर पायेगी, न फौज कुछ कर पायेगी और न ही राजनीतिज्ञ। यह तो नीरो की कहानी को दुबारा दोहराने जैसा लग रहा है। जो कि मोदी जी के कारनामों ने सब कुछ साफ-साफ दिखा रहा है। पुराने समय की बात है कि रोम नगर में अत्यंत रहस्यमय ढंग से आग की लपटें भड़क उठीं थीं, जिससे आधे से अधिक नगर जलकर खाक हो गया। जब आग की लपटें तेज होती जा रहीं थीं, नीरो एक स्थान पर खड़े होकर उसकी विनाशलीला देख रहा था और सारंगी बजा रहा था। यहां कुछ लोगों को ख्याल इस बात का भी था कि रोम में आग लगाने वाला भी नीरो ही था। वर्तमान समय में नीरो भारत में पैदा हो चुका है, जिनके हाथ में आज भारत की सत्ता है। कभी आधार कार्ड तो कभी जीएसटी, कभी आधार से पैन लिंक तो कभी आधार से मोबाईल नम्बर लिंक, कभी धारा 370 तो कभी धारा 377, कभी डिजीटल मीडिया तो मैं भी चैकीदार हूं, कभी राम मंदिर और बाबरी मस्जिद। मोदी साहब ने तो हर मुद्दे में राजनीतिक रोटियां सेकी और इतनी सेकी कि रोटियां जलकर काली हो गयीं और अब नारे लग रहे हैं ''चैकीदार चोर है''। खैर, कहीं अब ऐसा न हो कि इस नीरो का अंत भी उस नीरो की भांति ही होने की संभावनायें बनने लगें।


बहरहाल, मोदी सरकार कहती है कि साल 1947 में भारत-पाक का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था। इसके बाद भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई धर्म के लोग रह रहे हैं। पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक काफी प्रताड़ित किये जाते हैं। अगर वे भारत में शरण लेना चाहते हैं तो हमें उनकी मदद करने की जरूरत है। जनवरी 2019 में बिल पुराने फाॅर्म में पास किया गया था। सीएबी वास्तव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का चुनावी वादा है। गृह मंत्रालय ने वर्ष 2018 में अधिसूचित किया था कि सात राज्यों के कुछ जिलों के अधिकारी भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए आॅनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं।


वास्तविक तथ्य है कि किसी भी जाति-धर्म से हों, लेकिन हिन्दुस्तान में रहने वाले नागरिक को हिन्दुस्तानी ही तो कहा जाएगा। साफ है कि उनका अधार कार्ड, पहचान पत्र, पैन कार्ड इत्यादि भी बने ही होंगे, तो वो हिन्दुस्तानी होने का सुबूत क्यों दें। यदि हिन्दुस्तानियों से उनकी नागरिकता पर बात उठाई जाती है तो पूरे भारतवर्ष की सभी राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार भी असंवैधानिक हैं। क्योंकि जिनकी नागरिकता पर सवाल उठ रहे हैं, उनके वोटों को मान्य कैसे माना जाय। यदि कोई बाहर से हिन्दुस्तान आता है, भले ही वह नौकरी के लिए आये, पयर्टन के लिए आये या किसी अन्य कारण से, तो साफ है कि उसकी समय सीमा निर्धारित होती है और उससे ज्यादा वह हिन्दुस्तान में नहीं रह सकता। इसके बाद भी यदि कोई चोर-लुटेरा, आतंकवादी भारत में घुस रहा है तो यह सरकार की कमी है? यदि कोई आतंकी भारत में छिपा बैठा है, तो उसको पकड़ें और उसे बाहर करें, न कि भारतीय लोगों पर नागरिकता का पेंच कसकर उन्हें परेशान करें।


विश्वविद्यालयों में अराजकता, जगह-जगह मारपीट, आम जनता सड़कों पर, आगजनी, तोड-फोड़ और नारेबाजी जैसे माहौल में जीवन बसर करना बेहद मुश्किल है। पुलिस ऐसे लाठियां बरसा रही है, जैसे कि उन पुलिस वालों के परिवार न हों, अगर उन पर भी नागरिकता के तीर चलने लगेंगे तो क्या होगा? याद तो होगा ही कि जब पुलिस विपत्ति में थी और सड़कों पर थी, तब काले कोट ने खासी को धोया था और आम जन ने साथ दिया था। नागरिकता संशोधन बिल का विपक्षी दल भी विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यह भारत के संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है। आर्टिकल 14 समानता के अधिकार से संबंधित है। कांग्रेस, तृणमूल, सीपीआई (एम) जैसे दल सीएबी का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही देश के पूर्वोत्तर के राज्यों में इस बिल का काफी विरोध किया जा रहा है। अब इसे नरेन्द्र मोदी जी की तानाशाही न कहें तो क्या कहें। जनता के अनुसार नरेन्द्र मोदी भी एक तानाशाह की उपाधि ग्रहण कर चुके हैं। जैसा कि एडोल्फ हिटलर को द्वितीय विश्व युद्ध का कारण माना जाता है। कहीं ऐसा न हो कि तृतीय विश्व युद्ध का कारण नरेन्द्र मोदी न बन जायें। जैसा कि अनेक देशों में गृह युद्ध हुये हैं, जिनमें मुख्यतः इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस, चीन और जापान इत्यादि हैं। कहीं ऐसा न हो कि बाद भारत में भी गृह युद्ध के आसार उभरना शुरू न कर दें।


तानाशाहों की समानता देखें तो एडोल्फ हिटलर कला विद्यालय में प्रविष्ट होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे और नरेन्द्र मोदी जी ने चाय बेचकर अपना सफर शुरू किया। जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ तो हिटलर सेना में भर्ती हो गए और नरेन्द्र मोदी जी ने आरएसएस से जुड़कर जनता की नब्ज पकड़ी। हिटलर ने नाजी दल बनाया और अपने ओजस्वी भाषणों से एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना कर लक्ष्य को पा लिया। मोदी जी ने जनता की नब्ज तो पकड़ ही ली थी, फिर भारतीय जनता पार्टी को पकड़ा और अपने भाषणों के जरिये मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक का सफर तय कर लिया। कुल मिलाकर 1922 ई. में हिटलर एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गये थे और 2019 में नरेन्द्र मोदी जी ने भी अपना प्रभुत्व जमा लिया। यहां अंतर सिर्फ इतना है कि हिटलर का संघर्ष अपनी जर्मन जनता के लिए था, जिसके लिए वो जेल भी गये और अपनी आत्मकथा ''मेरा संघर्ष'' लिखी। दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी जी का संघर्ष, जिसमें जनता चार दिन खुश रही और आज सड़कों पर है। यहां आत्मकथा लिखी जा सकती है ''चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात''।


सीएबी के अनुसार पूर्वोत्तर के राज्य के लोगों का मानना है कि सीएबी के बाद इलाके में अवैध प्रवासियों की संख्या बढ़ जाएगी और इससे क्षेत्र की स्थिरता पर खतरा बढ़ेगा। यहां सोचने वाली बात यह भी है कि 1947 से लेकर अब तक स्थिरता का खतरा क्यों नहीं बढ़ा और आज तक इस तरफ सरकार की सोच में क्यों अस्थिरता थी? केन्द्र सरकारानुसार, सीएबी का सबसे अधिक असर पूर्वोत्तर के सात राज्यों पर पड़ेगा। भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के कई इलाकों को नागरिकता संशोधन विधेयक में छूट दी गई है। छठीं अनूसूची में पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम आदि शामिल हैं, जहां संविधान के मुताबिक स्वायत्त जिला परिषद हैं, जो स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।


बहरहाल, अगर जनता की जुबां और उनके दर्द की बात करें तो आगे की पंक्तियों में उनका दर्द भरा हुआ है। जैसे कि भारतीय होने के बावजूद भी 'भारतीय न माने जाने का गम' ही क्या कम था। नरेंद्र मोदी सरकार की आईएलपी एरिया, असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को कानून के दायरे से बाहर रखने की रणनीति ने कानून के खिलाफ विरोध को कुछ कमजोर जरूर कर दिया है, लेकिन इन इलाकों में बसे लाखों लोगों के लिए नई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। बाहर के हिंदुओं की रहने दें, अमित शाह जी पहले ये तो बताएं, 'किस तरह, कितनी बार साबित करें कि हम इंडियन हैं'। नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए से स्थानीय बंगालियों का कोई फायदा नहीं है। क्योंकि वो तो पहले से ही भारत के नागरिक हैं। क्या सरकार उनको भी शरणार्थियों के साथ मिलाएगी और तब उनको नागरिक माना जाएगा?


अभी हाल ही में केन्द्र सरकार ने एक बयान जारी किया है, जिसमें ''एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने बताया कि भारत में जिनका जन्म 1987 के पहले हुआ हो या जिनके मात-पिता की पैदाइश 1987 के पहले की है, वो कानून के मुताबिक भारतीय नागरिक हैं और नागरिकता कानून 2019 के कारण या देशव्यापी एन.आर.सी. होने की स्थिति में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। नागरिकता कानून के 2004 के संशोधनों के मुताबिक असम में रहने वालों को छोड़कर देश के अन्य हिस्से में रहने वाले ऐसे लोग जिनके माता या पिता भारतीय नागरिक हैं लेकिन अवैध प्रवासी नहीं हैं, उन्हें भी भारतीय नागरिक ही माना जाएगा।''


कुल मिलाकर गलती को सुधारना नहीं है, बस उसमें नये-नये पेंच डालने की कोशिश की जा रही है। कुछ हो न हो लेकिन जनता को परेशान करना है। अरे मोदी जी अब शादी के लिए भी ऐसी लड़की ढूंढें क्या, जो कि 1987 से पहले पैदा हुयी हो अथवा उसके माता-पिता 1987 से पहले पैदा हुये हों।


अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि हिटलर ने नाजीवाद से तानाशाही की और मुसोलिनी ने फासीवाद से। ''क्या नरेन्द्र मोदी जी आरएसएस के पेड़ की छांव तले बैठकर अपने नौ रत्नों में बुद्धिमान बीरबल (अमित शाह) की राय लेकर 'मोदीवाद' तैयार करके तानाशाही करने की सोच रहे हैं''। यदि ऐसा है तो गलत है, क्योंकि जिस दिन पूरा भारत सड़कों पर उतर आएगा तो उस दिन भागने के लिए स्थान भी नहीं बचेगा। इस गलती को यदि तुरंत सुधार लिया जाय तो इतना जरूर कहा जाएगा कि 'जान बची तो लाखों पाये, लौट के बुद्धु घर को आये' लेकिन हालात जरूर सुधर जाएगा।


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