अर्न्तराष्ट्रीय बालिका दिवसः बदलते समय में बेटी की बदलती पहचान

 



(सलीम रज़ा पत्रकार)

‘उड़ने दो बेटियों को, आसमान भी उनका है।
रोक सको तो रोक लो, अब ज़माना उनका है।’

देश की सभी बेटियों को बालिका दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं। जैसा कि सभी जानते हैं कि हर साल 11 अक्टूबर को बालिका दिवस मनाया जाता है। यह दिन हर उस बेटी को समर्पित है जो अपने परिवार, समाज और देश के लिए उम्मीद और आशा की किरण बनती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि बेटियाँ सिर्फ घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए नहीं बल्कि समाज की तरक्की की बंुनियाद हैं। आज से चार दशक पहले भी एक समय था जब बेटियों को को शिक्षा, आज़ादी और अपने सपनों को पूरा करने का अधिकार नहीं दिया जाता था, लेकिन आज के समय में हालात बदले हैं ।

आज की बेटियां पहले से कहीं ज्यादा अवेयर, आत्मविश्वासी और हिम्मती है। वह अब केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं रही, बल्कि देश और दुनिया में अपनी मेहनत से नई ऊँचाइयाँ छू रही है। स्कूलों, खेल के मैदानों, विज्ञान की प्रयोगशालाओं और सेना के मोर्चों तक, हर जगह बेटियों ने अपना परचम फहराया है। फिर भी सच्चाई यह है कि बहुत सी बालिकाओं को आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

समाज के कुछ हिस्सों में आज भी लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता। कुछ जगहों पर बाल विवाह, भेदभाव और असुरक्षा जैसी समस्याएँ उन्हें अपने सपनों को परवान नही ंचढ़ने देतीं हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि हमें अपनी सोच में बदलाव लाना पड़ेगा। एक शिक्षित बेटी न केवल अपने जीवन को सुधारती है, बल्कि पूरे परिवार और समाज को आगे बढ़ाती है।

आजकल का दौर डिजिटल और आधुनिकता का है। बेटियाँ तकनीक का उपयोग कर नए रास्ते बना रही हैं, सोशल मीडिया और ऑनलाइन शिक्षा के ज़रिए अपनी पहचान गढ़ रही हैं। लेकिन इस बदलते समय के साथ उनके सामने नई चुनौतियाँ भी आई हैं। इंटरनेट की असुरक्षा, गलत प्रभाव, और सामाजिक दबाव जैसे मुद्दे उन्हें प्रभावित करते हैं। इसलिए माता-पिता और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि वे बेटियों को सही दिशा और सुरक्षित माहौल दें ताकि वे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ सकें।

हर बेटी के भीतर एक अनोखी चमक होती है। जरूरत है उसे पहचानने और प्रोत्साहित करने की। उसे यह एहसास दिलाने की कि वह किसी से कम नहीं है। एक बेटी जब पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होती है, तो वह सिर्फ अपने सपनों को नहीं, बल्कि अपने परिवार के सपनों को भी पूरा करती है।

बेटियाँ संवेदना, शक्ति और उम्मीद का प्रतीक हैं। अगर समाज उन्हें सही अवसर दे, तो कोई भी मंज़िल उनके लिए असंभव नहीं। इसलिए बालिका दिवस सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक सोच है, एक ऐसा विचार जो हर व्यक्ति के दिल में होना चाहिए कि बेटियाँ हमारे जीवन की सबसे खूबसूरत पूंजी हैं।

हमें यह समझना होगा कि बेटी बोझ नहीं, आशीर्वाद है। वह घर में मुस्कान लाती है, समाज में सम्मान और देश में पहचान। आज की बालिका कल की नेता है, और उसे वही सम्मान, सुरक्षा और अवसर मिलना चाहिए जो हर इंसान को मिलते हैं।

जब हम हर बालिका को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान देंगे, तभी सच्चे मायनो में यह दिन सफल कहलाएगा। क्योंकि बेटी केवल आज नहीं, आने वाले कल की भी पहचान है।
‘बेटी है तो भविष्य है,
बेटी है तो जीवन में प्रकाश है।’

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