किडनी की बीमारी से जूझ रहे शिबू सोरेन ने ली अंतिम सांस
नई दिल्ली/रांची : झारखंड की राजनीति के एक युग का अंत हो गया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक, जनजातीय समाज के मजबूत स्तंभ और ‘दिशोम गुरु’ के नाम से पहचाने जाने वाले शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे और पिछले एक महीने से सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली में किडनी संबंधी समस्याओं के चलते भर्ती थे। उनके निधन की जानकारी उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर दी।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर भावुक शब्दों में लिखा –
“आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सबको छोड़कर चले गए… मैं आज शून्य हो गया हूं।”
शिबू सोरेन का स्वास्थ्य लंबे समय से ठीक नहीं था और वह कई बार दिल्ली के अस्पतालों में इलाज के लिए भर्ती होते रहे थे। 24 जून को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बताया था कि “उन्हें हाल ही में अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उनकी स्वास्थ्य जांच की जा रही है।” हालाँकि, स्थिति स्थिर बताई जा रही थी, लेकिन सोमवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।
झारखंड आंदोलन के अगुवा
शिबू सोरेन का नाम झारखंड अलग राज्य आंदोलन के साथ ऐतिहासिक रूप से जुड़ा हुआ है। उन्होंने जीवन भर आदिवासी अधिकारों, भूमि सुधार, और जन संघर्षों के लिए आवाज बुलंद की।
झारखंड राज्य के गठन में उनकी भूमिका केंद्रीय रही, और यही कारण है कि वे झारखंड के जनमानस में ‘दिशोम गुरु’ के रूप में सम्मानित हुए।
राजनीतिक जीवन और संघर्ष
शिबू सोरेन ने 1980 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र के आदिवासियों के लिए सामाजिक न्याय और अधिकार सुनिश्चित करना था।
उन्होंने भारतीय संसद में कई बार झारखंड की आवाज को बुलंद किया और केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में भी सेवाएं दीं।
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी बने, हालाँकि उनका कार्यकाल कई बार राजनीतिक उठा-पटक के कारण संक्षिप्त रहा।
वह लोकसभा के लिए सात बार निर्वाचित हुए, और जनसंघर्षों के माध्यम से उन्होंने खुद को जनता का नेता सिद्ध किया।
आदिवासी अस्मिता के प्रतीक
शिबू सोरेन को आदिवासी समाज का मसीहा कहा जाता है। उन्होंने साहूकारों और ज़मींदारों के अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करते हुए झारखंड के आदिवासी समाज को सामाजिक और राजनीतिक मंच प्रदान किया।
उनकी अगुवाई में झामुमो ने न सिर्फ झारखंड बल्कि देश की राजनीति में भी एक अलग पहचान बनाई।
राज्य में शोक की लहर, अंतिम विदाई की तैयारी
शिबू सोरेन के निधन की खबर फैलते ही झारखंड के विभिन्न जिलों में शोक की लहर दौड़ गई। रांची, धनबाद, बोकारो, दुमका और अन्य क्षेत्रों में लोग उनकी अंतिम झलक पाने के लिए उमड़ने लगे हैं। राज्य सरकार ने राजकीय सम्मान के साथ उनके अंतिम संस्कार की तैयारी शुरू कर दी है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य सरकार ने राजकीय शोक की घोषणा कर दी है। झारखंड विधानसभा और अन्य सरकारी संस्थानों में राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।
एक पिता, एक नेता, एक आंदोलनकारी
शिबू सोरेन न केवल एक राजनेता थे, बल्कि वे झारखंड की आत्मा का प्रतिनिधित्व करते थे। उनकी विरासत एक ऐसे नेता की है, जिसने सत्ता में रहते हुए भी संघर्ष को नहीं छोड़ा, और जनता के दुःख-दर्द को अपनी प्राथमिकता बनाए रखा।
अंतिम शब्द:
आज जब झारखंड उन्हें अंतिम विदाई देने की तैयारी कर रहा है, पूरा प्रदेश और देश उनके संघर्ष, समर्पण और सामाजिक न्याय के लिए किए गए कार्यों को श्रद्धांजलि दे रहा है।
‘दिशोम गुरु’ चले गए हैं, लेकिन उनका आंदोलन, उनका आदर्श, और उनका संघर्ष – झारखंड की मिट्टी में हमेशा जीवित रहेगा।
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