आठ साल बाद भी जीएसटी पर सियासत गर्म, राहुल बोले– एमएसएमई तबाह

 


भारत सरकार द्वारा हर वर्ष 1 जुलाई को मनाया जाने वाला जीएसटी दिवस इस बार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने की आठवीं वर्षगांठ के रूप में मनाया जा रहा है। आठ वर्ष पहले, 1 जुलाई 2017 को देश में जीएसटी को लागू कर भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया गया था। केंद्र और राज्य स्तर पर लगाए जाने वाले दर्जनों करों को खत्म कर जीएसटी के माध्यम से एक एकीकृत कर ढांचा तैयार किया गया, जिससे व्यापार जगत में पारदर्शिता, अनुपालन और कर संग्रह में सरलता का दावा किया गया।

सरकार इस दिवस को जीएसटी प्रणाली को लेकर जागरूकता बढ़ाने, अनुपालन को प्रोत्साहित करने और व्यापार में सुधार के प्रतीक के रूप में देखती है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय सहित विभिन्न विभागों द्वारा इस अवसर पर विशेष कार्यक्रमों, सेमिनारों और सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है, जहां जीएसटी के लाभों और उपलब्धियों को रेखांकित किया जा रहा है।

हालांकि इस अवसर पर विपक्ष विशेषकर कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर से जीएसटी को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे ‘आर्थिक अन्याय’ करार देते हुए कहा कि जीएसटी कोई कर सुधार नहीं बल्कि "कॉरपोरेट भाईचारे का क्रूर हथियार" है। उन्होंने आरोप लगाया कि जीएसटी का ढांचा छोटे दुकानदारों, एमएसएमई, और गरीब वर्ग के लिए दंड स्वरूप बन गया है, जबकि बड़े कॉरपोरेट घरानों को इससे लाभ पहुंचाया जा रहा है।

राहुल गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि जिस 'गुड एंड सिंपल टैक्स' यानी ‘अच्छा और सरल कर’ का वादा किया गया था, वह अब एक जटिल और अनुपालन के दुःस्वप्न में बदल चुका है। उन्होंने यह भी बताया कि अब तक जीएसटी ढांचे में 900 से अधिक संशोधन किए जा चुके हैं, जिससे यह व्यवस्था लगातार भ्रमित करती जा रही है। पांच स्लैब वाली कर व्यवस्था को उन्होंने असमानता और प्रशासनिक उलझन की जननी बताया।

अपने बयान में राहुल गांधी ने उदाहरण स्वरूप कहा कि कारमेल पॉपकॉर्न से लेकर क्रीम बन तक — हर चीज़ जीएसटी के जाल में उलझी हुई है। उन्होंने आरोप लगाया कि बड़ी कंपनियां अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की टीम के साथ इस कर प्रणाली में रास्ता निकाल लेती हैं, लेकिन छोटे कारोबारी और खुदरा व्यापारी लालफीताशाही में फंसे रह जाते हैं।

राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि पिछले आठ वर्षों में एमएसएमई क्षेत्र को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। उनके अनुसार जीएसटी लागू होने के बाद से अब तक 18 लाख से अधिक छोटे व मझौले उद्यम बंद हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि आम नागरिक अब चाय पीने से लेकर स्वास्थ्य बीमा खरीदने तक हर कदम पर जीएसटी चुका रहा है, वहीं दूसरी ओर कॉरपोरेट जगत को प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की कर छूट मिल रही है।

उनके अनुसार यह कर व्यवस्था राज्यों के वित्तीय स्वायत्तता पर भी चोट करती है और उन्हें केंद्र पर निर्भर बना रही है। इससे केंद्र–राज्य संबंधों में असंतुलन पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि जीएसटी पोर्टल भी व्यापारियों के लिए परेशानी का स्रोत बन चुका है और अनुपालन की जटिलताओं ने व्यापार करने की सहजता को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

वर्तमान सरकार जहां जीएसटी को भारत की आर्थिक संरचना के लिए आवश्यक सुधार के रूप में प्रस्तुत करती है, वहीं विपक्ष इसे जनविरोधी, असमान और पूंजीपतियों के पक्ष में झुका हुआ बताता है। जीएसटी दिवस पर एक बार फिर यह बहस तेज हो गई है कि क्या जीएसटी वास्तव में देश की कर व्यवस्था को सरल बनाने वाला कदम रहा है, या यह छोटे व्यापारियों और राज्य सरकारों के लिए बोझ बनता जा रहा है।इन विरोधाभासों के बीच, यह स्पष्ट है कि जीएसटी की आठवीं वर्षगांठ केवल जश्न का विषय नहीं, बल्कि इसे सुधारने, सरल बनाने और समावेशी बनाने की ज़रूरत पर पुनर्विचार का अवसर भी है।

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