लेख: पहलगाम का जख्म और भारत की शांति की प्रतिज्ञा
22 अप्रैल, 2025 की सुबह वह दिन था, जब पहलगाम की शांत घाटी पर भय और क्रूरता का साया छा गया। हरे-भरे मैदानों और कल-कल बहती नदियों के बीच अचानक गोलियों की बौछार ने सब कुछ बदल दिया। पर्यटकों से भरी घाटी में अज्ञात आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिसमें कम से कम 26 लोगों की जान चली गई और दर्जनों घायल हो गए। यह घटना न केवल एक सुरम्य स्थल की शांति भंग करने वाली थी, बल्कि पूरे देश को गहरे सदमे में डालने वाली थी।
दुनिया भर से इस जघन्य हमले की निंदा की गई। भारत में राजनीतिक गलियारों से लेकर आम जनता तक, हर कोई इस अमानवीय कृत्य से स्तब्ध और दुखी था। सीमा पार से आतंकी नेटवर्क की भूमिका की आशंका के चलते राजनयिक तनाव फिर से बढ़ गया है। टेलीविजन चैनलों पर हमले के दृश्य, रोते-बिलखते परिजन और मोमबत्तियों से रोशन प्रार्थनाएं देशभर में दुख और आक्रोश की लहर बन गईं।
परंतु इस राष्ट्रीय शोक के बीच एक और सशक्त संदेश उभर कर आया – एकजुटता का। मुस्लिम समुदायों, सामाजिक संगठनों और धार्मिक नेताओं ने हमले की खुलकर निंदा की और स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
दिल्ली की गलियों से लेकर केरल के कस्बों तक, मस्जिदों और मदरसों ने शांति और सह-अस्तित्व की अपील की। धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में हिंदू-मुस्लिमों ने एक साथ शिरकत की, दुख साझा किया और संदेश दिया कि कुछ गुमराह लोगों के कृत्य किसी समुदाय की पहचान नहीं हो सकते।
राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका भी सराहनीय रही।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं ने भावनात्मक अपील जारी करते हुए कहा कि देश को दुख की इस घड़ी में नफरत नहीं, एकता और न्याय की जरूरत है। उन्होंने सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही सामुदायिक नफरत को भी चुनौती दी।
विश्लेषकों का कहना है, इस तरह के हमलों के बाद किसी भी समुदाय को कोसने या अलग-थलग करने की प्रवृत्ति खतरनाक होती है। इससे वह वैमनस्य फैलता है, जिसका फायदा चरमपंथी ताकतें उठाती हैं।
यह हमला केवल एक सुरक्षा संकट नहीं था, यह भारत की साझी संस्कृति और नागरिक मूल्यों की परीक्षा भी था। और इस बार, देश की बड़ी आबादी ने नफ़रत के बजाय उम्मीद, शांति और भाईचारे को चुना।
जब देश अपने नागरिकों के लिए शोक में डूबा है, तब ये आवाज़ें – जो शांति, समावेश और न्याय की बात करती हैं – आने वाले समय के लिए रास्ता दिखा रही हैं।
अल्ताफ मीर
संस्थान: जामिया मिलिया इस्लामिया
Sources: Through Whatsapp
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