देहरादून: मलिन बस्तियों के हजारों अवैध भवनों पर चलेगा न0 नि0 का चाबुक

 


देहरादून: राजधानी में तेजी के साथ हो रहे अतिक्रमण पर नगर निगम सख्त नजर आने लगा है। आपको बता दें कि राजधानी में नदी के किनारे बसी बस्तियों में काफी तादाद में अवैध निर्माण हुआ है। अब हाईकोर्ट के निर्देश पर नगर निगम ने मलिन बस्तियों मे अवैध निर्माण चिह्नित करने का कार्य शुरू कर दिया है। सर्वे करने के बाद सप्ताहभर में नगर निगम की ओर से ऐसे भवन स्वामियों को नोटिस भेजे जाएंगे। अगर भवन स्वामी स्वयं अतिक्रमण नहीं हटाते हैं तो उन भवनों पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई भी की जा सकती है। नगर निगम ऐसे लोगों के खिलाफ विधिक कार्यवाही भी कर सकती ळे जो कार्रवाई में बाधा उत्पन्न करेंगे।

आपको बता दें कि देहरादून नगर निगम क्षेत्र में स्थित कुल 129 बस्तियों को चिह्नित किया गया है, जिनमें करीब 40 हजार भवन होने का अनुमान है। जैसा की आपको पूर्व से ही मालूम है कि साल .2016 के बाद किए गए निर्माण नियमानुसार अवैध करार दिए गए हैं,लेकिन कोई रोक.टोक न होने के कारण शहर के विभिन्न क्षेत्रों में अवैध रूप से बस्तियों का विस्तार कर दिया गया और सैकड़ों नए भवन तैयार कर दिये गये। साल 2016 के बाद से नगर निगम ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया । अब हाईकोर्ट के आदेश पर नगर निगम ने बस्तियों में साल .2016 के बाद बने अवैध भवनों का सर्वे शुरू कर दिया है। पहले चरण में रिस्पना नदी के किनारे स्थित बस्तियों में अवैध निर्माण चिह्नित किए जा रहे हैं। नगर आयुक्त गौरव कुमार ने बताया कि एक सप्ताह के अन्दर सर्वे का कार्य पूरा हो जाएगा।

इसके बाद अवैध भवन स्वामियों को नोटिस भेजकर निर्माण ध्वस्त करने को कहा जाएगा। स्वयं निर्माण न हटाने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।आपको बता दें कि मलिन बस्ती अधिनियम के तहत साल 2016 के बाद निर्माण अवैध है। ऐसे में नगर निगम की टीम यह जांच कर रही है कि वर्ष 2016 के बाद मलिन बस्तियों में बिजली-पानी के कनेक्शन लिए गए हैं या नहीं। इसके लिए ऊर्जा निगम और जल संस्थान का भी सहयोग लिया जा रहा है। साल 2016 के अक्टूबर में बस्तियों के नियमितीकरण को मालिकाना नीति बनाई गई,लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण नियमितीकरण का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया।

साल 2018 में हाईकोर्ट ने शहर की सभी अवैध बस्तियों को खाली कराने के आदेश दिए थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने बस्तियों को बचाने के लिए तीन साल का अध्यादेश विधानसभा में पास कर दिया था। हालांकि, साल 2016 में चिह्नित की गई बस्तियों और भवनों को ही सरकारी रिकार्ड के हिसाब से वैध माना गया और उसके बाद के निर्माण अवैध घोषित किए गए। लेकिन, अवैध निर्माण पर कार्रवाई कभी नहीं की जा सकी। गौरतलब है कि राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए अवैध बस्तियों को खाली नहीं होने देते। अब एक बार फिर कोर्ट की सख्ती के बाद नगर निगम अलट्र मोड पर आ गया है।

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