शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज से बेमिसाल मोहब्बत की याद में बनाया था आहू खाना, जानें पूरा इतिहास

 


(जानकारी)

बुरहानपुर. दखन का दरवाजा कहे जाने वाला बुरहानपुर मुगलकालीन कई ऐतिहासिक इमारतों और उनके इतिहास को संजोए हुए हैं. इसके साथ ही बुरहानपुर शहर के कुछ ऐसे अनछुए ऐतिहासिक पहलू भी हैं, जो इतिहास के पन्नों में धूमिल हो गए हैं और जिसमें ताजमहल का इतिहास भी छिपा हुआ है.

मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज महल के प्रेम की प्रतीक ताजमहल को सारी दुनिया जानती है, लेकिन इस ताजमहल की इतिहास की शुरुआत बुरहानपुर से उस वक्त हुई थी जब शाहजहां की प्रिय पत्नी मुमताज बेगम ने अपनी चौदहवी संतान को जन्म देते हुए अंतिम सांस बुरहानपुर शहर के ताप्ती नदी किनारे बने शाही किले के महल में ली थी. अंतिम समय में मुमताज बेगम ने अपने शौहर शाहजहां से अपनी बेमिसाल मोहब्बत कि याद में एक भव्य मकबरा बनाने का वादा लिया था.



 इसलिए ताजमहल को आगरा के यमुना तट पर बनाने का किया फैसला…

इस वादे को पूरा करने की शुरुआत ताप्ती नदी के पूर्वी तट पर आहूखाना से की गई थी, जिसके लिए आहूखाना क्षेत्र के पाइन्दाबाद में बेगम मुमताज के शरीर की ममी बनाकर उसे वहां दफन किया गया था. करीब 6 माह तक दफन रही बेगम मुमताज की अंतिम आरजू बुरहानपुर शहर में पूरी नहीं हो सकी. इस इलाके की आबोहवा, मिट्टी और भौगोलिक स्थिति ताजमहल जैसी भव्य और खूबसूरत इमारत को लंबे वक्त तक संजोए रखने के काबिल नहीं होने से मुगल बादशाह शाहजहां ने ताजमहल को आगरा के यमुना तट पर बनाने का फैसला किया.

6 माह बाद आहूखाना इलाके में दफन मुमताज के शव को आगरा ले जाया 

जिसके बाद 6 माह तक आहुखाना इलाके में दफन किए गए बेगम मुमताज के शव को आगरा ले जाया गया और वहां मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल की तामीर करवाई. आज भी मुमताज महल ताजमहल के भव्य मकबरे में दफन है. लेकिन बेगम मुमताज महल की ख्वाहिश बुरहानपुर में ताजमहल बनवाने की थी, वह पूरी नहीं हो सकी. बुरहानपुर शहर में ताजमहल नहीं बन पाने की कसक आज भी शहर वसियों को है. देश-विदेश से आने वाले पर्यटक आहूखाने का दीदार कर मुगलिया दौर को याद करते हैं.

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