अपनी आंखों के सामने जलमग्न होती रहीं बचपन की यादें



कालसी / देहरादून/ कभी टिहरी के लोगों ने अपनी आंखों के सामने अपने बचपन के सुनहरे पलों को हमेशा-हमेशा के लिए जलमग्न होते हुए देखा था कई सालों बाद फिर वही मंजर लोहारी गांव का था। जैसा कि आपको मालूम है कि  देहरादून जिले के कालसी क्षेत्र में  120 मेगावाट क्षमता वाली लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना की झील का जलस्तर बढ़ने के साथ ही लोहारी गांव पूरी तरह से जलमग्न हो गया।अपनी आंखों के सामने अपने गांव को डूबता देख वहां का माहौल भावुक हो गया ग्रामीणों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।


झील की गहराइयों में बांध प्रभावितों की सुनहरी यादें, संस्कृति और खेत-खलिहान गुम हो गए। ऊंचे स्थानों पर बैठे ग्रामीण दिनभर भीगी आंखों से अपने पैतृक गांव को जल समाधि लेते देखते रहे। ग्रामीणों की मांग थी कि उन्हें आखिरी बिस्सू पर्व पैतृक गांव में ही मनाने को कुछ वक्त दिया जाए लेकिन सभी को 48 घंटे के नोटिस पर गांव खाली करना पड़ा।


देहरादून जिले के लोहारी गांव में यमुना नदी पर बनी इस रन आफ रिवर जल विद्युत परियोजना से सालाना 330 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होना है। इन दिनों झील में जल स्तर बढ़ाया जा रहा है। अभी दो मीटर पानी और बढ़ाया जाना है। डूब क्षेत्र में आने के कारण ग्रामीणों को गांव खाली का नोटिस दिया गया था।

जल विद्युत निगम की ओर से उन्हें सामान व उपज ढोने के लिए वाहन भी मुहैया कराए गए थे। हालांकि गांव खाली होने के बावजूद सोमवार को विस्थापित आसपास ऊंचे स्थानों पर बैठकर अपनी सुनहरी स्मृतियों को झील में समाते देखते रहे।


बांध विस्थापितों का आरोप था कि शासन.प्रशासन व जल विद्युत निगम ने पुनर्वास किए बगैर ही उन्हें गांव छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।

विस्थापितों का कहना था कि उन्होंने गेहूं की फसल तो काट ली थीए लेकिन टमाटर, मटर, आलू, प्याज व लहसुन के लहलहाते खेत ऐसे ही छोड़ने पड़े। उपजिलाधिकारी कालसी सौरभ असवाल ने बताया कि प्रशासन की ओर से बांध विस्थापितों के लिए रहने की व्यवस्था की गई है लेकिन ग्रामीण वहां जाने को तैयार ही नहीं हैं।


आपको बता दें कि 120 मेगावाट की लखवाड़-व्यासी जल विद्युत परियोजना के लिए आवश्यक सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने के बाद वर्ष 2014 में परियोजना पर दोबारा कार्य शुरू हुआ था। दिसंबर 2021 में परियोजना का निर्माण कार्य पूर्ण कर उसकी कमिशनिंग की जानी थी लेकिन तमाम जटिलताओं के चलते कमिशनिंग में देरी हुई। 1777.30 करोड़ की लागत वाली इस परियोजना के डूब क्षेत्र में सिर्फ लोहारी गांव ही आ रहा था।


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