उ.प्र: सियासी मकड़जाल में फंसा ‘आलू किसान’ लेगा तीसरे चरण में इम्तहान



सियासी दलों का लोकलुभावना वादा और अपने मतदाताओं की ममता जो सिर्फ वोटिंग के दरम्यान दिखाई जाती है, मीठी चासनी में लिपटी इस लालीपाप की उपरी सतह स्वादिष्ट और आशा से ज्यादा मीठी होती है लेकिन वक्त के साथ इसका स्वाद इतना कसैला हो जाता है जो कई सालों तक भुलाया नहीं जा सकता। खैर उत्तरप्रदेश में तीसरे चरण के मतदान की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं। पहले दो चरणों में क्या हुआ ये तो ई.वी.एम ही जानें लेकिन मौजूदा सरकार की अग्निपरीक्षाओं का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है। इस चरण में किसान मौजूदा भाजपा सरकार के लिए चुनौती बनने जा रहे हैं। जैसा कि मालूम है कि जिन 11 जिलों में तीसरे चरण का मतदान होना है वो आलू वैल्ट कहलाती है और किसान बहुल्य क्षेत्र भी है। आपको बता दें कि आगरा एक्सप्रेसवे पर कन्नौज की सरहद शुरू होते ही खेतों में हर तरफ आलू की चमक दिखाई पड़ती है। इस वक्त कहीं खेतों में खुदाई चल रही है, तो कहीं आलू के ढेर लगे हैं। नजारा ये है कि खेतों के बीच खड़े ट्रैक्टरों पर आलू की बोरियां लदने के बाद हर किसान के चेहरे पर जल्द ही अपने श्रम की कीमत मिलने की उम्मीद दिखती है। यहां के किसानों का कहना है कि इस बार पैदावार तो ठीक है बस उम्मीद अच्छे दाम मिलने का इंतजार है। फिलहाल 10 फरवरी को आलू का भाव  800 रुपये क्विंटल था लेकिन यह पता नहीं है कि आगे भी यही भाव रहेगा। अगर न्यूनतम भाव तय हो जाए तो किसान सुकून की सांस ले। अब सवाल ये उठता है कि आखिर गन्ने की तरह आलू के रेट क्यों तय नहीं होता है। क्यों नहीं आलू का औद्योगिक विकास हो रहा है। आलम ये है कि ज्यादा पैदावार और मुनासिब रेट न मिल पाने की वजह से  हर दूसरे साल आलू फेंकने की स्थिति बन जाती है। इस बात को लेकर समूचे आलू बेल्ट के किसानों में मौजूदा सरकार ही नहीं वल्कि सभी सियासी दलों के प्रति नाराजगी है।

किसानों का येभी कहना है कि हर बार जब चुनावी दौर होता है तो सियासी दल  चुनाव में चिप्स, अल्कोहल फैक्टरी और आलू पाउडर बनाने की बात करते तो हैं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिखता है। वैसे  इस चुनाव में भी सियासी दल इसके दावे तो कर रहे हें लेकिन यह इन दावों में कितना दम और हकीकत है और किसानों के हक के लिए कुछ बदल पाएगा इस पर भी शको सुबह बना हुआ  है लिहाजा इन हालातों में वोट उसे ही देंगे जो आलू किसानों के हित की बात करेगा।किसानों का कहना है कि  सियासी दलों की आलू किसानों के प्रति उदासीनता समस्त किसानों में नाराजगी बनी हुई है ये बात दीगर है कि हर बार सियासी दल अपने अपने घोषणा पत्र में आलू से जुड़ी बातें रखी हैं ये बात अलग है कि किसी दल ने कम तो किसी ने ज्यादा रखी हैं लेकिन ऐसी घोषणाएं तो हर बार चुनाव में होती ही हैं लेकिन उनके धरातल पर उतरने मे संशय है।

फर्रुखाबाद ,कायमगंज से लेकर एटा तक और मैनपुरी से फिरोजाबाद तक आलू किसान ही हैं सातनपुर आलू मंडी में पहुंचने वाले किसान सवाल उठाते हैं उनकी उपज की बिक्री को लेकर सरकार गंभीर क्यों नहीं होती है उन लोगों का कहना है कि  आलू आधारित उद्योग नहीं लगने की वजह से उनके बच्चे उन्हें छोड़कर दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में रहने के लिए विवश हैं। क्योंकिउनकी जिन्दगी सिर्फ आलू से मिलने वाले रुपये पर ही निर्भर हे जिससे पूरे परिवार का पेट भरता है लेकिन लाइफ स्टाईल नहीं सुधारा जा सकता है चाहें  बेटी की शादी हो या बेटे की कोचिंग की फीस सिर्फ आलू की पैदावार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। 

एटा के प्रगतिशील किसानों का कहना है  कि हमेशा की तरह चुनावी सीजन में आलू किसानों के लिए सुनहरे वायदे चिप्स फैक्टरी, अल्कोहल फैक्टरी, प्रसंस्करण आदि की सबको याद आ रही है। किसानों का कहना है कि फर्रुखाबाद के नवाबगंज में चिप्स फैक्टरी के लिए 2013 में और कन्नौज में वोदका फैक्टरी के लिए जमीन अधिगृहीत की गई थी  लेकिन नतीजा ढ़ाक के तीन पात रहा। 


वहीं मथुरा में आलू चिप्स उत्पादन इकाई की बात चली लेकिन किसानों को उसका कोई फायदा नहीं मिला। अलीगंज के किसान कहते हैं आलू में मुनाफा कम होता जा रहा है। इसलिए सड़क के किनारे की जमीनों पर दुकान बनवा दी गई हैं। दो साल तक आलू की खेती में फायदा होता रहा लेकिन तीसरे साल अचानक आलू के दामों में गिरावट होती है और लागत भी नहीं निकल पाती है ये करीब 10 साल से यही ट्रेंड चल रहा है।

अब अग्नि परीक्षा वाली बात सामने है जो मैं उपर भी कह चुका हूं क्योंकि विधानसभा चुनाव में तीसरे चरण में शामिल 16 जिलों की 59 विधानसभा क्षेत्रों में 36 विधानसभा क्षेत्र ऐसी हैं जो आलू उत्पादक किसान हैं, इन जिलों मे यादव, कुर्मी बहुलता वाले इन इलाकों में किसान आलू को खरा सोना मानते हैं। अगर आलू के उत्पादन क्षेत्रों के हिसाब से देखें तो देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक प्रदेश उत्तर प्रदेश है। यहां करीब 6.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आलू बोया जाता है। प्रदेश में करीब 147.77 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ है। आगरा से शुरू होकर मथुरा,इटावा, फर्रुखाबाद से लेकर कानपुर देहात तक फैले आलू बेल्ट में देश में होने वाली कुल पैदावार का करीब 30 फीसदी हिस्सा पैदा होता है। किसानों का कहना है कि डीजल की कीमतों में उतरोत्तर वृद्धि, डीएपी और यूरिया की कमी, तैयार आलू आढ़ती के सहारे होने का दर्द किसानों को दुख देता रहता है।

भाजपा की बात करें तो भाजपा ने मेगा फूड पार्क, एक जनपद एक उत्पाद, फूड प्रॉसेसिंग,किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली, स्टोरेज प्लांट आदि के वादे किसानों से किये हैं।

वहीं सपा ने अपने घोषणा पत्र में किसान आयोग का गठन, ग्रीन फील्ड परियोजनाओं के लिए लैंड बैंक की स्थापना, किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली, ब्याज मुक्त कर्ज, हर 10 किलोमीटर के दायरे में किसान बाजार नेटवर्क के तहत बाजार की स्थापना सभी मंडलों में फूड प्रॉसेसिंग क्लस्टर। प्रदेश में पांच जगह फूड प्रॉसेसिंग क्लस्टर, कन्नौज में कंटेनर डिपो के साथ आलू निर्यात क्षेत्र की स्थापना।

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र मे दिलासा दिया है कि उनकी पार्टी किसानों हित में कोल्ड स्टोरेज और खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देगी,हर ब्लॉक में कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की जायेगी।

फर्रुखाबाद आलू आढ़ती एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि यहां का आलू पश्चिम बंगाल, असम के साथ ही नोएडा भी जाता है। नोएडा में आलू पाउडर बनाने की कंपनी है। यदि यह सुविधा आलू बेल्ट में हो जाए तो यहां के किसानों और आढ़तियों दोनों को फायदा मिलेगा। इंडियन पोटैटो ग्रोवर एंड एक्सपोर्ट सोसायटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कहना है कि हर जिले में गुणवत्ता जांचने की व्यवस्था हो जाए तो दूसरे राज्यों में आलू भेजना आसान हो जाय। साल 2012 में सपा सरकार बनने पर तत्कालीन सहकारिता मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने पहल की थी उन्होंने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए मंडी परिषद केे किसानों को प्रशिक्षण दिलाया था बाद में पता चला कि निर्यात के लिए जरूरी रोगमुक्त प्रमाण पत्र दिए जाने की यहां व्यवस्था ही नहीं है। गन्ना परिषद की तरह आलू विकास परिषद, आलू आयोग का गठन हो नए बीज के लिए अनुसंधान केंद्र बने और निर्यात की दृष्टिकोण से किसानों को आलू बीज उपलब्ध कराए जाएं। सरकार आलू की लागत का मूल्यांकन करे और खुदाई के वक्त बाजार भाव तय करे जिससे किसानों को फायदा होने लगेगा।

 

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