5 राज्यों के चुनाव में पड़ता असर देखकर केंद्र ने बिना चर्चा किए कृषि कानूनों को किया निरस्त

 


 कब खत्म होगा किसानों का आंदोलन ? क्या चुनावों के डर से सरकार ने वापस लिए कानून ? उठ रहे तरह-तरह के सवालों के बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला ने किसानों की बात करते हुए कहा कि संसद चर्चा के लिए होती है, शोर करने के लिए नहीं। वहीं दूसरी तरफ भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि हमारा आंदोलन कहीं नहीं जा रहा है, यहीं है। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन को एक साल पूरे हो चुके हैं और सरकार ने भी कृषि कानूनों को वापस ले लिया है फिर भी दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान बैठे हुए हैं। इसी बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का बयान सामने आया। उन्होंने केंद्र सरकार को निशाना बनाते हुए कहा कि 750 किसानों ने शहादत दी और जब इन्होंने देखा कि पांच राज्यों में यह हार जाएंगे तो फौरन उन्होंने काले कानून वापस लेने का ऐलान किया। जब इन्होंने संसद में काले कानून पास किए थे तो हमने चर्चा करने की बात कही थी लेकिन एक बात नहीं सुनी गई।आपको बता दें कि दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर चल रहा किसान आंदोलन समाप्त हो सकता है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि संयुक्त किसान मोर्चा ने आपात बैठक बुलाई है। इस बैठक में 5 किसान नेताओं का पैनल आगे की रणनीति पर चर्चा करेगा। वहीं बीते दिनों एसकेएम ने बताया था कि उसने आंदोलन को समाप्त करने का अनुरोध करने वाले सरकार के प्रस्ताव का जवाब दिया है जिसमें कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है। उसने किसानों पर दर्ज फर्जी मामले वापस लेने के लिए आंदोलन समाप्त करने की सरकार की पूर्व शर्त पर भी स्पष्टीकरण मांगा है।बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि सरकार ने एक प्रस्ताव भेजा, उस पर चर्चा हुई और एसकेएम के सभी सदस्यों के सामने पेश किया गया। सरकार के प्रस्ताव में कहा गया है कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी की मांग पर एक समिति का गठन करेगी और इस समिति में एसकेएम के बाहर के किसान संगठन, सरकारी अधिकारी और राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि हमें इस पर आपत्ति थी... 

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