उत्तराखण्डः वन विभाग में अफसरशाही हावी,हवा में घूम रहे सरकारी शासनादेश

  


 

 बिना उपनल मे रजिस्ट्रेशन के कई कर्मचारियों को अफसरों द्वारा कई डिवीजनो में अपनी मनमानी करके रखा जा रहा है जो पहले से विभाग में कार्यरतृ हैं, जबकि सरकार द्वारा सिर्फ प्रवासियों को ही रोजगार की छूट दी गई थी इसका अफसरों द्वारा गलत फायदा उठाया जा रहा है। मेरे द्वारा पहले भी मुख्यमंत्री व वन मंत्री से इसकी शिकायत की गई थी। हाल ही मे अंजली कोठारी द्वारा भी कहा जा रहा है कि मैं 29 अक्टूबर 2020 से उपनल में समायोजित हूं, जबकि आज भी उनका वेतन आउटसोर्सिंग एजेन्सी को विभाग द्वारा भेजा जा रहा है क्यों ? अंजली कोठारी को उपनल में समायोजित करने के वन मंत्री के निर्देश के बाद भी वन विभाग के अधिकारियों द्वारा अंजली कोठारी को आउटसोर्सिंग से ही कार्य करने को विवश किया जा रहा है अन्यथा सेवायें समाप्त करने की बात कही जा रही है। अंजली कोठारी का कहना है कि नवम्वर माह से मुझे वेतन नहीं दिया जा रहा है। वहीं सूत्रों का कहना है कि आउटसोर्स के माध्यम से सिर्फ अंजली कोठारी को ही क्यों रखा गया जबकि इसके अलावा भी राजा जी पार्क वगैराह में तकरीबन 250 से अधिक लोगों को उपनल के माध्यम से रखा जाना है।  फिर अंजली कोठारी के साथ ऐसा कयों है।  बहरहाल उत्तराखण्ड में अफसर शाही इस कदर हावी है कि उनके आगे सारे शासनादेश बेकार हैं। ये बात साफ है कि जब आउटसोर्स भर्तियों पर सरकार शासनसदेश जारी करके रोक लगा रही है और जो सेवारत हैं उन्हें भी उपनल में समायोजित करने की बात कह रही है फिर भी अधिकारी उन आदेशों को ठेंगा दिखाकर अपनी मन-मर्जी पर उतारू हैं। दरअसल उत्तराखण्ड में बहुत बड़ा खेल चल रहा है जिसमें आउटसोर्सिंग कम्पनियों को कर्मचारियों का मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न करने की छूट इन अधिकारियों ने दे रखी है । अगर ये कहा जाये कि ये कमीशन खोरी का खेल हे और इसके छींटे वन विभाग के अधिकारियों पर गिर रहे हैं तो शायद गलत न होगा।

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