साधना जयराज - परोपकार धर्म है जो सेवा भाव के लिए पहचाना जाता है

 

              साधना जयराज



देहरादून/परोपकार करने के लिए दृढ़ इच्छाश्क्ति का होना बहुत जरूरी है,क्योंकि परोपकार एक धर्म है जिसे पहचान की जरूरत नहीं होती है, लेकिन लोग इस धर्म की पहचान में भी अपने नाम को सर्वोपरि समझते हुये सेवा भाव को परोपकार से विरक्त कर देते हैं। अक्सर आपने देखा होगा लोग सेवा भाव के लिए किये गये काम बाद में पहले सुर्खियों में बनने की चाहत ज्यादा रखते हैं। वेसे भी एक होड़ सी चली है किसी भी कार्य करने के साथ-साथ फोटो सेशन की शायद लोग इसे स्मृति के लिए कराते होंगे, लेकिन ये उस व्यक्ति के आत्मसम्मान को ठेस है जिसे आप मदद कर रहे है।बहरहाल इस दौड़ में ऐसे भी लोग हैं जो परदे के पीछे से रहकर परोपकार करने की इच्छाा रखते हैं । इस कोरोना काल में भी ऐसा ही देखने को मिला एक व्यक्ति को सामान दिया गया और उसके इर्द-गिर्द दस लोग घेरा बनाकर खड़े फोटो खिंचवाने में मस्त हैं। ये काम यहीं तक नहीं रहा इसका पूरा इस्तेमाल करने में सोशल मीडिया ने भी अपना अहम रोल अपनाया फिर क्या था सोशल मीडिया पर शुरू हो गईं धड़ा-धड़ पोस्ट शेयर करना उसके बाद ये देखना भी कि कितने लाईक और कमेंट मिले हैं। शायद उस असहाय मजबूर व्यक्ति को प्रचारित करके एनालिसिस की जा रही हो। लेकिन इससे हटकर भी वो लोग हैं जो इससे बेखबर लोगों की मदद कर रहे हैं। ऐसी ही शख्सियत हैं साधना जयराज जी जो  तेजस्वनी चैरिटेबिल ट्रस्ट की पैटर्न हैं और डी.बी.एस.पीजी कालेज की एलेमिनाई एसोसियेशन की अध्यक्ष होने के साथ उत्तराखण्ड जन सेवा मंच की सचिव भी हैं। अपने ग्रुप के जरिये उन्होंने पिछले साल कोरोना काल में लोगों की मदद करी थी, उनका कहना है कि परोपकार एक धर्म है जिसमें निस्वार्थ भाव से काम करना ही परम धर्म है। वहीं उनका कहना था कि पहले ऐसी महामारी का दौर किसी ने नहीं देखा था जिससे सारी वयवस्थायें अस्त-व्यस्त हो गई थी, इस आपदा में दैनिक कार्य करके अपने संसाधन जुटाने वाले प्रभावित लोगों की संख्या तो ज्यादा थी ही लेकिन इनमे वो भी मध्यम श्रेणी के लोग थे जो अपनी व्यथा कहने में सकुचा रहे थे, लेकिन जब रास्तों में अवरोध आ जाता है तो ऐसे में अपने नजदीकी लोगों में ही उन्हें आशा की किरण दिखाई देती है जो निस्वार्थ,निष्काम भाव से लोगों की मदद करते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे लोगों ने भी उनसे संपर्क किया और मैने भी उन लोगों के अत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे इसलिए उनको कहा कि आप सीधे स्टोर से आवश्यक खाद्य सामग्री लेकर बिल मुझे भेज दें, ऐसे में उनका आत्मसम्मान भी बना रहा और मुझे भी संतुष्टि मिली। साधना जी ने बताया कि इस महामारी के दौरान बेजुबानों की सुध लेने वाला कोई नहीं था ऐसे में उनके साथ उनके ग्रुप के लोग गाड़ी में खाद्य सामग्री रखकर सड़कों पर उन बेजुबानों को देते थे। उन्होंने बताया कि पिछले कोरोना काल में प्रवासियों का भी हमवतन लौटने का दौर जोरों पर था इसी को ध्यान में रखकर जगह-जगह सीमेंट के तकरीबन 55 वाटर टैंक रखवाये थो जिससे राहगीरों को पीने का पानी उपलब्ध हो सके। कहते हैं प्यासे को पानी पिलाना भूखे को खाना खिलाना और बेजुबान की सेवा करने से तो ईश्वर भी प्रसन्न होता है। साधना जी ने बताया कि इस बार कोरोना ने जैसा तांडव मचाया ऐसी त्रासदी हमारे देश ने नहीं झेली थी,जिसमें न जाने कितने अपनों से बिछड़ गये। इस दौरान उन्होंने अपने ग्रुप के सहयाेिगयों के साथ पूरी तन्मयता से लोगों की मदद करी चाहें कोरोना से संक्रमित लोगों को आक्सीजन उपलब्ध कराना हो या फिर प्लाज्मा डोनेट कराने में सहयोग हो या फिर कोरोना मरीजों की बेशुमार संख्या के बीच मरीजों को अस्पताल में बैड नहीं मिल पा रहे हों उनको जैसे ही सूचना मिली फौरन प्रयासरत् होकर उन्हें बैड उपलब्ध कराने में अपनी अहम भूमिका निभायी। उनके इस कार्य में विभिन्न संगठनों का भी भरपूर सहयोग मिला। इतना ही नहीं साधना जयराज ने इस दौरान बुजुर्ग कोरोना मरीजों को एम्बुलेंस की उपलब्ध्ता न होने पर ई-रिक्शा अपने निजि खर्च पर स्पॅान्सर किये जिससे मरीजों को अस्पताल तक लाने और ले जाने में देर न लगे। ये  ई-रिक्शा शहर के महंत इन्दिरेश अस्पताल,दून अस्पताल,कोरोनेशन अस्पताल पर सुबह से अपराहन 3 बजे तक संचालित रहते थें। उनका कहना है कि मैंने परदे के पीछे से सेवाभाव का कार्य किया है न कि अपने नाम के लिए। सच्चे और निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता से ईश्वर भी खुश होता है। बहरहाल हमें उनके भावों को समझना चाहिए जिससे अलग रहकर उन्होंने अपने सेवा भाव को जारी रखा, वे और लोगों के लिए प्रेरणा हैं उनकों सौ-सौ सलाम।






सौजन्य से- इन्डियन आईडल डेस्क

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