राजस्थान बदल रहा है या राजनीति


जयपुर /  राजस्थान में पिछले 4 सप्ताह से चल रहे सत्ता संग्राम के चलते सियासत गरमाई हुई हैं। देश में अब तक खींचतान सत्तासीन पार्टी व विपक्षी दोनों के मध्य होती थी लेकिन राजस्थान में पिछले 4 सप्ताह से जो सत्ता का सियासी घमासान देखने को मिल रहा है जिससे साफ साफ प्रतीत हो रहा है कि यहां सियासत पक्ष और विपक्ष के बीच ना होकर दोनों ही पार्टियों के बीच सत्ता संघर्ष जारी है। आमजन यह सोचने पर विवश है कि एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के नुमाइंदे होटलों में बैठकर सरकार का संचालन कर रहे हैं। वहीं स्थान परिवर्तन क्या किसी वास्तु ज्योतिषी गणना के अनुसार करते हुए मंत्रियों, विधायकों सहित जैसलमेर में तब्दील कर दिया गया या फिर विधायकों के खिसकने का डर। जिससे ऐसा सोचने पर मजबूर हैं राजस्थान बदल रहा है या राजनीति। अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट समूह द्वारा विधायकों को तोड़े जाने का डर कहीं ना कहीं राज्य के मुख्यमंत्री के दिलो-दिमाग में अवश्य रहा होगा। राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने लंबी चुप्पी तोड़ते हुए राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का यह कहना कि वह पार्टी की रीति नीति के अनुरूप ही कार्य करेंगी लेकिन आत्म स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।


अपने आप में एक मजबूत दावेदारी साबित करती है अब चाहे भाजपा आलाकमान बदली हुई परिस्थितियों में उन्हें कोई तवज्जों दे या ना दे यह अलग विषय है। लेकिन बिना तवज्जों के पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का सहयोग यदि भाजपा को पूर्ण रूप से नहीं मिलता है तो भाजपा की स्थिति भी कांग्रेस से कहीं बदतर हो सकती है। राजनीति के जानकार पंडितों के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ही संपूर्ण राजस्थान में एक स्थापित राजनेता के रूप में मान्यता प्राप्त बताया जा रहा है साथ ही राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पहली दफा उनकी जादूगरी पर सचिन पायलट के रूप में एक कुशल मदारी के रूप में पटकनी अवश्य दी है इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। इससे पूर्व कभी भी राजनीति के जादूगर कहलाए जाने वाले गहलोत को कभी भी राजनीति के दांव पेंच में इतना उलझा हुआ कभी नहीं पाया गया। वहीं गहलोत के मुख्यमंत्री रहते इतने तल्ख तेवर कभी नहीं दिखाई दिए। आखिरकार मुख्यमंत्री गहलोत का इतना आक्रमक होना वहीं ठीक इसके विपरीत पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट का सूझबूझ के साथ न्यायालय के प्रति विश्वास एवं अपने साथी विधायकों का अटूट संपर्क उन्हें शांत स्वभाव के साथ अपनी बात रखने के लिए मजबूती देता रहा।कांग्रेस आलाकमान भी अब तक सचिन पायलट को पार्टी से निष्कासित करने जैसे कदम उठाने से भी गुरेज कर रही है। जिसका सीधा सीधा आकलन किया जा सकता है कि यहां कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को पार्टी की गतिविधियों के खिलाफ नहीं मान रही है।


Source :Agency news 


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