कोरोना मामले में निशाने पर है मौलाना साद!



 











कोरोना महामारी से देश की सवा अरब जनता को बचाने के लिए देशभर में लागू लॉक डाउन को नेस्तनाबूद करने के लिए चर्चित निजामुद्दीन मरकज की तब्लीगी जमात के साथ ही इस जमात का सर्वेसर्वा मौलाना साद भी खासी चर्चाओं में है।मौलाना साद का पूरा नाम मौलाना मोहम्मद साद वल्द मौलाना हारुन मूल निवासी कांधला जिला शामली,उत्तर प्रदेश है। कोरोना वायरस फैलाने को लेकर व लॉक डाउन का घोर उल्लंघन करने के मामले में मौलाना साद खलनायक बनकर उभरे है।चूंकि पुलिस ने भी उनके व तब्लीगी जमात के विरुद्ध लॉक डाउन तोड़ने के मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया है।ऐसे में सच क्या है यह तो पुलिस विवेचना या फिर अदालत में विचरण के बाद ही सामने आएगा।लेकिन फिलहाल यह कहा जा सकता है कि तब्लीगी जमात के स्वयंभू अमीर बनने से लेकर अभी तक मौलाना साद का विवादों से पुराना नाता रहा है। कहा जा रहा है कि जिस देवबंदी विचारधारा से प्रेरित होकर धर्म की रहनुमाई के लिए तब्लीगी जमात की बुनियाद पड़ी थी,मौलाना साद और उनके ख्याल लोग इस बुनियाद के ही मुखालिफ खड़े हो गए। यही कारण रहा कि दारुल उलूम देवबंद ने माना कि मौलाना साद की कुरान और हदीस से जुड़ीं तकरीरों में उनकी निजी राय शामिल रहती है।जो इस्लाम धर्म मे जायज नही है। इतना ही नहीं कहते है कि तब्लीगी जमात का अमीर बनने की खातिर मौलाना साद ने नियम-कायदो का भी पालन नही किया, जो जमात द्वारा निर्धारित किये गए थे। उत्तर प्रदेश के जिला शामली कांधला के मोहम्मद इस्माइल के घर जन्मे मौलाना इलियास कांधलवी ने देवबंदी विचारधारा से प्रेरित होकर सन 1927 में तब्लीगी जमात की स्थापना इसलिए की थी कि दीन से भटके लोगों को कुरान और हदीस के हवाले से इस्लाम के सच्चे रास्ते पर लाया जा सकें। मौलाना इलियास कांधलवी के इंतकाल के बाद उनके बेटे मौलाना यूसुफ तब्लीगी जमात के अमीर बने थे। मौलाना यूसुफ के बाद जमात की अमीरीयत उनके नूर-ए-चश्म मौलाना हारुन को मिलनी थी, लेकिन उनका बेवक्त इंतकाल हो गया। ऐसे में मौलाना इलियास कांधलवी के भांजे मौलाना इनाम उल हसन को तब्लीगी जमात की बागडोर सौंपी गई। बाद में उनके बेटे मौलाना जुबैरउल हसन अमीर बने। यहीं से तब्लीगी जमात का सिरमौर बनने का असली द्वंद्व शुरू हुआ। मौलाना इनाम उल हसन ने जमात के संचालन के लिए एक दस सदस्यीय शूरा कमेटी गठित की थी।सन 1995 में मौलाना इनाम उल असन का भी इंतकाल हो गया। लेकिन उनके द्वारा गठित सूरा कमेटी काम करती रही, लेकिन मौलाना साद को यह मंजूर नहीं हुआ। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रायविड मरकज के मौलाना मोहम्मद अब्दुल वहाब की बनाई 13 सदस्यीय शूरा को दरकिनार कर संस्थापक मौलाना इलियास के पड़पौते मौलाना साद ने वर्ष 2015 में खुद को तब्लीगी जमात का अमीर घोषित कर इस इस्लामिक संगठन पर अपना कब्जा जमा लिया। तब्लीगी जमात का अमीर बनने को लेकर मौलाना साद हमेशा विवादों में रहे हैं। दारुल उलूम नदवातुल उलमा के जैद मजाहिरी ने इस पर तब्लीगी जमात का बहम इख्तिलाफ और इत्तेहाद ओ इत्तेफाक में तफ्सील से इस बारे में लिखा है। इतना ही नहीं दारुल उलूम देवबंद ने 6 दिसंबर 2016 और दो मार्च 2018 को मौलाना साद के मुखालिफ फतवे भी जारी किए। ऑनलाइन जारी फतवों में स्पष्ट लिखा गया कि जांच में यह सिद्ध हो चुका है कि कुरान और हदीस का व्याख्यान मौलाना साद अपने नजरिए से करते हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पत्र लिखकर मौलाना साद की तकरीरों और अमीरीयत पर सवाल खड़े किए गए। कांधला की सरजमीं जो इस्लाम के पाक मरकज से कम नहीं है। यहां की मिट्टी में मौलाना इलियास और मौलाना इफ्तखारुल हसन सरीखे इस्लामिक विद्वानों की पैदाइश हुई। ये सादा पसंद और दीन से जुड़े लोग थे। तब्लीगी जमात के मौलाना साद के दादा मौलाना इलियास का पुश्तैनी घर आज भी यहां एकदम सादा हैं, जबकि मौलाना साद ने कांधला के छोटी नहर के निकट आलीशान मकान बना रखा है। फिलहाल इस मकान पर ताला लगा है। जमात का काम मौलाना इलियास काधलवी साहब ने भटके हुए मुसलमानों को सही राह पर लाने के लिए शुरू किया था। इस मिशन में लोग निस्वार्थ भाव से जुड़ते थे, लेकिन साल 2013 के बाद इस जज्बे में कमी आने से समाज का जिम्मेदार तबका व ज्यादातर उलमा इकराम मौजूदा जमात प्रबंधन से कन्नी काटने लगे हैं।
– मौलाना मोहम्मद अंसार खान


तब्लीगी जमात की बुनियाद दीन से दूर मुसलमानों को इस्लाम से करीब लाने के लिये लिए हुई थी। मौलाना इनाम उल हसन साहब के अमीर रहने तक सब सही चलता रहा। बाद में अमीरीयत को लेकर तब्लीगी जमात में विवाद शुरू हो गए। देवबंदी विचारधारा से जमात की पैदाइश हुई और दारुल उलूम ने ही इनके खिलाफ बयान भी दिया था।
– मौलाना शोएब नदवी






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