सिंगल यूज प्लास्टिक इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा




 







सलीम रज़ा

सबसे पहले विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं। साथ ही उन लोगों को भी शुभकामनाऐं जो पर्यावरण संरक्षण की बातें तो बहुत करते हैं लेकिन धरातल पर शून्य होते हैं। खैर हमारे देश में पूरे साल किसी न किसी बात को लेकर दिवसों का आयोजन किया जाता है इतना ही नहीं बड़े-बड़े मंचो से लंबे चौड़े भाषणों को भी हम सुनते ही हैं, ये बात अलग है कि उस पर हम कितना मंथन करते हैं और उसके प्रति कितना सजग हैं। यूं तो हर साल पर्यावरण दिवस मनाया जाता है इस दिन हर कोई सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सक्रिय रहकर पर्यावरण संरक्षण की बात करता हुआ नज़र आता है। बहुत से वे लोग भी इस दिवस पर अपनी सक्रियता बढ़ाते हैं जो अपने घर की फुलवारी या फिर घर की बालकनी में सजाये गये गमले मे लगे पौधों को पानी भी नहीं देते,खैर ये वो बाते हैं जिसे हम खुली आंखों से देखते चले आ रहे हैं लेकिन हम इसके प्रति कितने संवेदनशील हैं ये समय बता रहा है। हमें जरा पीछे की तरफ जाना होगा जहां पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी की गिरफ्त में था उस त्रासदी को शायद ही कोई भूल पाया होगा जिसमें न जाने कितनों ने अपनों को खोया था। अगर हम पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशील होते तो हमें उस वक्त आक्सीजन की कमी से अपनों को न खोना पड़ता,आक्सीजन की कमी से न जाने कितने लोगों की जानें चली गईं तब जाकर हमें प्रकृति के इस उपहार की कमी महसूस हुई जिसका हम बेदर्दी के साथ दोहन करते चले आ रहे हैं।

अगर मैं ये कहूं कि कोरोना ने हमें प्रकृति और वन संरक्षण की महत्ता को बताया तो शायद गलत न होगा। जैसा कि आपको मालूम है विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है इसका उद्देश्य पर्यावरण के प्रति लोगों को अवेयर करना है।आज ही के दिन लोगों से पेड़ों को संरक्षित करने पेड़ पौधे लगाने और नदियों को साफ करने का आहवान किया जाता है।इस दिवस की शुरूवात 5 जून 1972 को संयुक्त राष्ट्र महासंघ द्वारा की गई थी। इस साल यानि 2023 पर्यावरण दिवस की थीम है ‘‘प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान’’ विश्व पर्यावरण दिवस 2023 का मेजबान देशः आइवरी कोस्ट द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की मेजबानी नीदरलैंड के सहयोग से की जा रही है, जो प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने में उनके नेतृत्व को प्रदर्शित करता है। ‘प्लास्टिक प्रदूषण का संकट एक ऐसा खतरा है जो हर समुदाय को प्रभावित करता है। आइवरी कोस्ट के पर्यावरण और सतत विकास मंत्री जीन0ल्यूक अस्सी ने एक बयान में कहा,‘‘ हमें प्लास्टिक महामारी के लिए विविध उपचारों पर गर्व है।‘प्लास्टिक प्रदूषण और स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर इसके हानिकारक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

इस पर दतत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। नीदरलैंड के पर्यावरण मंत्री विवियन हेजेनेन ने कहा,‘उसी समय, हमें सच्चे, प्रभावी और मजबूत समाधानों की आवश्यकता है,अब आप जरा सोचिये क्या हम इस थीम के सही मायने को समझ रहे हैं इसकी वास्तिवकता या फिर इसमें क्या शमिल है और स्थानीय स्तर पर हम कितने जागरूक होकर इसकी गम्भीरता को समझ रहे है। दल्ली में हुये एकसेमिनार में प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ दुनिया भर में इस प्रदूषण का मुक़ाबला करने के लिए अगले तीन सालों के लिए युवाओं को जिम्मेदारी सौपी गई है । जरा देखिये और सोचिये कि वैश्विक स्तर पर अनुमानित एक करोड़ 90 लाख से दो करोड़ 30 लाख टन प्लास्टिक कचरा हर साल झीलों,नदियों और समुद्रों में फेंक दिया जाता है। इतना ही नहीं अगर हम प्रकाशित समाचारों पर नजर दौड़ायें तो ऐवरेस्ट की चोटी से लेकर महासागरों के तलहटी तक प्लास्टिक प्रदूषण फैला हुआ है,और मानव स्वास्थ्यए अर्थव्यवस्था और हमारे पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाकर टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति को ख़तरे में डाल रहा है।दिनो दिन बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने गंभीर चिंता जाहिर करते हुए कहा, कि पलास्टिक उपयोग में हो रही उतरोत्तर वृद्धि पर्यावरण और मानव जीवन को खतरे में डाल रही हैं। ऐसे में मानवाधिकार मामलों के विशेषज्ञों ने इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए जल्द से जल्द कारगर उपाय अपनाने का आग्रह किया है।

इसके बढ़ते खतरे के बारे में विशेषज्ञों का कहना है किए ‘हाल के दशकों में प्लास्टिक का प्रोडक्शन तेजी से बढ़ा है और आज पूरी दुनिया में हर साल अगर औसत देखा जाये तो 40 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है।’ विशेषज्ञों की चिन्ता ठीक ही है उनका यह बयान विश्व पर्यावरण दिवस से ठीक पहले जारी किया गया है जो इस प्रदूषण को रोकने और मानव को जागरूक करने की दिशा में कारगर कदम कहा जा सकता है, वो भी ऐसे समय में जब ऐसे में जब प्लास्टिक प्रदूषण पर अन्तरराष्ट्रीय सन्धि के लिए पेरिस में वार्ता चल रही है। गौरतलब है कि प्लास्टिक प्रदूषण पर वार्ता के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी वार्ता समिति की दूसरी बैठक पेरिस में शुरू हो चुकी है। यह बैठक 29 मई से 2 जून 2023 के बीच संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक,वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के मुख्यालय में आयोजित की गई है। इस वार्ता के बाद प्रतिनिधियों ने सहमति के लिए 2024 की समय सीमा तय की है।

ऐसे में मानवाधिकारों और पर्यावरण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञ डेविड बॉयड और विषाक्त पदार्थों एवं मानवाधिकारों से जुड़े यूएन के विशेष रिपोर्टर मार्कोस ओरेलाना ने देशों और अन्य हितधारकों से मानव अधिकारों को अंतरराष्ट्रीय संधि के केंद्र में रखने का आग्रह किया है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि बढ़ता प्लास्टिक कचरा हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है और अपने जीवन चक्र में मानव जीवन पर अलग-अलग तरीके से दुष्प्रभाव डाल रहा है।लेकिन हमें और कहीं नजर दौडऋाने की जरूरत क्या है पहले तो हम अपने आपको देखें कि हम इस बात से बेफिक्र होकर प्लास्टिक चीजों का उपयोग कर रहे हैं लेकिन ये नहीं जानते कि हम इसका जिस तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं वह एक बहुत ही जहरीली लहर के बीच हैं। क्या आपको मालूम है कि प्लास्टिक का जीवन चक्र बहुत सारे तरीकों से हमारे स्वस्थ पर्यावरण,जीवन, भोजन, जल और आवास पर प्रभाव डाल रहा है जिन्हें पाना हर इंसान का अधिकार है। हम इसका इस्तेमाल फिर भी बेफिक्री के साथ कर रहे हैं यह जानते हुये भी कि प्लास्टिक ऐसी चीज है जो लगभग पूरी तरह जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। इतना ही नहीं प्लास्टिक उत्पादन के दौरान जो हानि पहुंचाने वाले पदार्थ निकलते हैं इसमें ऐसे जहरीले केमिकल्स होते हैं जो इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा हैं। वहीं इनके उपयोग के बाद फेंका गया कचरा हमारे ग्रह यानि ‘ब्लू प्लेनेट’ को दूषित कर रहा है,इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक भी शामिल है।

इस सिंगल यूज प्लास्टिक के 85 फीसदी हिस्से को या तो लैंडफिल में डंप कर दिया जाता है या फिर ऐसे ही खुले वातावरण में फेंक दिया जाता है। इतना ही नहीं विषाक्त पदार्थों से भरे प्लास्टिक का जलाना या उसे रीसायकल करना भी इंसान के लिए खतरे की घंटी है। आज प्लास्टिक और उसके सूक्ष्म कण जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जाना जाता है वो हमारे पानी,भोजन और यहां तक की जिस हवा में हम सांस लेते हैं उस तक में मौजूद हैं।मुझे इस बात को कहने मे कोई भी संकोच नहीं है कि इंसान इतना काहिल हो गया वह जब बाजार जाता है तो खाली हाथ लेकिन खरीदा हुआ सामान प्लास्टिक की थैली में बड़े ही शान के साथ घर मे लाता है। एक रिसर्च से पता चलता है कि इसका उपयेग इस कदर बढ़ गया कि अब प्लास्टिक धरती के हर कोने में पहुंच चुका है जहां इंसानों के भी सबूत नहीं हैं। इसके साथ ही यह हमारे फेफड़ों से लेकर रक्त तक में घुल चुका है। प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स न केवल मौजूदा बल्कि आने वाली पीढ़ियों में भी मेटाबॉलिक डिजीज का कारण बन सकते हैं। विशेषज्ञों ने इस ओर भी लोगों का ध्यान आर्कषित किया कि प्लास्टिक प्रदूषण की इस समस्या से पहले से ही हाशिए पर रह रहे समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि उन्हें प्लास्टिक प्रदूषण और इसके कचरे के साए में रहना पड़ता है।

ये वो लोग हैं जो प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे ज्यादा सम्पर्क में आने की वजह से पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं का शिकार हो रहे हैं। ये वो लोग हैं जो पैट्रोलियम रिफाइनरी, स्टील प्लांट, कोयला आधारित बिजली संयत्रों, लैंडफिल के आसपास सहित ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है। उनका कहना है कि प्लास्टिक प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जो क्लाईमेट में आते बदलावों में भी योगदान कर रहा है, लेकिन अक्सर उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इस बात मं कोई शक और सुवह नहीं है कि समुद्रों में पाए जाने वाले प्लास्टिक के कण,समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों को सोखने की क्षमता को सीमित कर देते हैं। एनवायर्नमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यूके द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट‘कनेक्टिंग द डॉटस,प्लास्टिक पॉल्यूशन एंड द प्लैनेटरी इमरजेंसी’ से पता चला है कि 2050 तक महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा मछलियों के कुल वजन से भी ज्यादा होगी। अब इस पर चिंता करना और जागरूक होना भी बहुत जरूरी है कि कैसे दुनियाभर में पसरा प्लास्टिक इंसानी जीवन को कितनी तरह से प्रभावित कर रहा है, जिसमें स्वस्थ वातावरण, स्वास्थ्य, भोजन, पानी और बेहतर जीवनस्तर का अधिकार शामिल है। देखा जाए तो यह देशों और व्यवसायों के मानवाधिकार से जुड़े विशिष्ट दायित्व हैं, जो प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई के हक में लागू होते हैं ।

शोधकर्ताओं के मुताबिक प्लास्टिक के महीन कण पक्षियों की आंत में मौजूद माइक्रोबायोम में बदलाव कर रहे हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। ऐसे में इंसानों को भी इससे सावधान रहने की जरूरत है । समुद्री पक्षियों में मौजूद इन माइक्रोप्लास्टिक्स ने आंतों में पाए जाने वाले फायदेमंद बैक्टीरिया को कम करते हुए रोगजनकों और एंटीबायोटिक,प्रतिरोधी रोगाणुओं को को बढ़ा दिया था।गौरतलब है कि यह माइक्रोबायोम शरीर में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों जैसे बैक्टीरिया,फंगस, वायरस और उनके जीन का संग्रह होते हैं। यह सूक्ष्मजीव स्वाभाविक रूप से शरीर में पाए जाते हैं और पाचन तंत्र में मदद करते हैं। यह माइक्रोबायोम न केवल हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं वल्कि इसके साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नियंत्रित करने में मदद करते हैं। यदि हम माइक्रोप्लास्टिक्स की बात करें तो वो आज दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या बन चुका है। इसके प्रभावों को लेकर वैज्ञानिक वर्षों से चिंतित हैं। प्लास्टिक के पांच मिलीमीटर से भी छोटे प्रदूषण यह कण दुनिया पर किस कदर हावी हो चुके हैं कि इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह आज न केवल महासागरों की गहराइयों से लेकर अंटार्कटिका के निर्जन क्षेत्रों तक मौजूद हैं। इतना ही नहीं यह हमारे भोजन से लेकर हमारे रक्त तक में घुल चुके हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक जंगली जीवों में इनका पाया जाना गंभीर हैं चूंकि इंसान भी पर्यावरण और आहार के जरिए इन माइक्रोप्लास्टिक को निगल रहा है ऐसे में यह गंभीर चिंता का विषय है।

आज पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारकों में सबसे बड़ा कारक सिंगल यूज प्लास्टिक है। सिंगल यूज प्लास्टिक की रोकथाम को लेकर सरकार भी चिंतित है लिहाजा इसे रोकने के लिए कानून भी बना दिया गया और इसे बैन भी कर दिया गया लेकिन आज भी इसके उपयोग में खासी कमी नहीं आई है क्योंकि इंसान स्वार्थी हो गया है वो पैसे कमाने और अपनी जीविका चलाने के लिए खतरों से खोलता है। सिंगल यूज प्लास्टिक बैन होने के बाद छिपे चोरी ये बाजारों में पहुंचाई जाती है ये ही कारण है कि इसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। अगर हम प्लास्टिक के चलन की बात करे तो इसका इतिहास 117 साल पुराना है । यानि साल 1907 में जब प्लास्टिक तैयार हुआ तो पूरी दुनिया में इसका फैलाव बहुत तेजी से बढ़ता गया। हम सब को मालूम है कि हम तब चिंतित होते हैं जब ये सीधे-सीधे हमारे जीवन को प्रभावित करता है लेकिन तब ये इतना बढ़ चुका होता है कि इसे समेटना एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है और मौजूदा वक्त में जो संकट खड़ा है वो इसी की ही देन है । अभी भी ज्यादातर घरों में सिंगल यूज प्लास्टिक आराम से दिख जायेगी, क्योंकि घर के आसपास , दुकानों में, बाजारों में इस बैन प्लास्टिक का इस्तेमाल चोरी छिपे ही सही लेकिन बिना किसी रोक.टोक के हो रहा है। सरकार ने भी अपनी अवचेतन हुए मस्तिष्क को चेतन किया और सिंगल यूज प्लास्टिक की चीजों को बनाने, बेचने और इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगा दी है ,लेकिन पाबंदी का मतलब सिर्फ हम पर ही लागू नहीं होता है वल्कि इस पाबंदी का मतलब इन चीजों को बनाना,आयात करना, इसका स्टोरेज, डिस्ट्रिब्यूशन, वगैरा को पूरी तरह से बैन करना होगा लेकिन जैसा हम देख रहे हैं जमीनी सतह पर उतार पाने में सरकार विफल ही हुई है।

हालांकि इसमें सरकार ही दोषी नही है उससे ज्यादा हम कसूरवार हैं क्योंकि हम इस जानलेवा प्नास्टिक का मोह नहीं डोड़ पा रहे हैं।जो प्लास्टिक कभी हमारे बाजार से सामान लाने के लिए आसान तरीका होने के साथ चमत्कारी चीज मानी जाती थी वही आज हमारे पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है। क्या आपको मालूम है कि इसका सिंथेटिक पॉलिमर सालों साल तक कायम रहता है। इस प्लास्टिक ने लोगों को सस्ती और सुविधाजनक चीज उपलब्ध करा दी जिसकी वजह से ये हमारी जेब से लेकर घर की रसोई तक प्लास्टिक ही प्लास्टिक है,लेकिन ये प्लास्टिक पर्यावरण के लिए जहर है इसमें कोई दो राय नहीं है। हम जितना जल्द इसके अंत की तरफ देख रहे हैं ये उतना आसान नहीं है क्योंकि इस प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म होने में न जाने कितनी सदियां लगेंगी इसका अंदाजा आसानी से नहीं लगाया जा सकता है। आज अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इसके नुकसानातों पर मंथन हो रहा है इतना ही नहीं इस बार पर्यावरण की थीम ही प्लास्टिक प्रदूषण है । हम सभी इस बात को जानते हैं कि ये जहरीले प्लास्टिक केमिकल इंसानों के साथ-साथ जानवरों के लिए भी खतरनाक हैं। ये इतने जहरीले है कि सालों-साल तक मिट्टी में वैसे के वैसे ही पड़े रहते हैं। जरा देखिये ये प्लास्टिक मिट्टी की गुणवत्ता को तो खराब कर ही रही है इसके अलावा पानी को भी दूषित करके इंसानी जीवन के लिए बड़ा खतरा बनती जा रही हैं।

हम बाहर देखने के वजाए अपने घरों के कचरे से लेकर पड़ोस के कूड़ेदान तक नजर दौड़ायें तो पायेंगे कि सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे में सबसे ज्यादा पायी जाती है। ये ही कचरा नालियों से बहकर नदियों और समुद्र तक पहुंचता है जो पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचा रहा है। सरकारों द्वारा करोड़ों के रूपये इस कचरे को साफ करने में लगाया जा रहा है,लेकिन ये सिंगल यूज प्लास्टिक धीरे-धीरे बड़ा खतरा बनता जा रहा है।आज पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारकों में सबसे बड़ा कारक सिंगल यूज प्लास्टिक है। जाहिर सी बात है कि जैविक सम्पदा हर देश की अनमोल और बेशकीमती धरोहर होती है फिलहाल हमारे देश की गणना विश्व के संपन्न देशों में की जाती है फिर भी लिंचिंग प्लानेट रिपोर्टस के मुताबिक तकरीबन 46 सालों के अन्तराल में 60 फीसद पशु,पक्षी,जलचर व सांप एवं मछलियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। दुःख है कि जानवरों और पौधों की अनेक प्रजातियां लगभग विलुप्त के कगार पर हैं। हम इसके संवर्द्धन और संरक्षण के जरिये अपनी इस बेशकीमती धरोहर को बचा सकते हैं लिहाजा प्रकृति का सुतुलन बनाये रखने के लिए ये नितान्त आवश्यक है।हमें जमीन पर वृक्ष लगाना जरूरी है हमें इस बात से इन्कार नहीं करना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण लोगों की जीविका से जुड़ा होता है, अगर पर्यावरण बिगड़ता है तो ऐसे हालात में गरीबी,भुखमरी,असमानता और बेरोजगारी को बढ़ावा मिलता है,फिर तो ये बिल्कुल साफ है कि मनुष्य के जीवन यापन का साधन सीधे प्रकृति से जुड़ा होता है। आपने महसूस किया होगा कि जमीन का स्वरूप बिगड़ा तो किसान प्रभावित,पानी कम तो मछलीपालन करने वाले प्रभावित और नदी,तालाब सूखे तो गांव पर संकट के बादल। हमें देखना और समझना चाहिए कि बढ़ते प्रदूषण ने ही कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ हमारी जंग को कमजोर बना दिया था इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं कि प्रकृति के संरक्षण से ज्यादातर समस्याओं का निदान संभव है।

बहरहाल राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रकृति के दिनो-दिन बिगड़ते मिजाज़ को लेकर बड़ी.बड़ी गोष्ठियां आयेजित की जाती हैं मंचों पर चिंतायें व्यक्त की जाती रही है,हर पर्यावरण दिवस पर संकल्प दोहराये जाते हैं लेकिन चकाचौंध से अन्धे और सुख संसाधनो की चाहत ने इसके संतुलन को बिगाड़ दिया है। आज के दौर में धड़ल्ले से सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयों पर रोक लगानी होगी लिहाजा हमें पर्यावरण दिवस 2023 की थीम पर चलकर संकल्प लेना होगा कि हम सिंगल यूज प्प्लास्टिक का न सिर्फ बहिष्कार करें वल्कि बाजारों में भी चोरी छिपे बेचने वाले दुकानदारों के प्रति भी सख्त रवैया अपनायें। लिहाजा पारिस्थतिक तंत्र जो नाुजक और नष्ट हो रहै हैं उनके संरक्षण और संवर्द्धन के लिए आगेे आकर पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने में अपना योगदान दें। अगर हमें अपना जीवन सुरक्षित रखना है तो सिंगल यूज प्लास्टिक से मुंह मोड़ना होगा तभी हमारा पर्यावरण स्वस्थ और संतुलित होगा जो हमारे जीवन के लिए लाभदायक होगा।

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