सहकारिता के समंदर में भ्रष्ट्राचार के मोती बटोर रही धामी सरकार



देहरादून: जीरो टॉलरेंस का ढोल पीटने में मशगूल उत्तराखंड की धामी सरकार की नाक के नीचे नित नए मामले सामने आ रहे हैं लेकिन बेशर्मी का आलम यह है कि सरकार निर्लज्जता के साथ मौन साधे बैठी है। खनन के मामले में क्या क्या खेल नहीं हुए, यह किसी से छिपा नहीं है।उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने सहकारिता महकमे में एक के बाद एक किए जा रहे घपलों को लेकर धामी सरकार को आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा कि घपले घोटालों का पर्याय बन चुके सहकारिता विभाग के समंदर में धामी सरकार भ्रष्ट्राचार के मोती बटोर रही है। 

उन्होंने कहा कि विगत चुनाव से पहले सहकारिता भर्ती घोटाला सामने आया था जिसमें अपात्रों का चयन हो गया था और पात्र अभ्यर्थी मुंह ताकते रह गए थे। उसकी जांच के नाम पर भी केवल नाटक हुआ था।महर्षि ने कहा कि ताजा मामला बहुउद्देशीय सहकारी समिति भानियावाला का सामने आया है जिसमें एक दर्जन से अधिक किसानों के साथ धोखाधड़ी कर 30 लाख रुपए से अधिक का गबन कर दिया गया। इस समिति में 600 से अधिक खाते हैं यानी जांच पूरी हो जाए तो करोड़ों का घपला सामने आ सकता है। जबकि कार्रवाई के नाम पर मात्र एक वसूली सहायक को निलंबित किया गया है। हालांकि विभागीय सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने इस तरह के मामलों का संज्ञान लेकर जांच का भरोसा जगाया है लेकिन विभागीय मंत्री का मौन हैरान करने वाला है।

श्री महर्षि ने कहा कि पूरे प्रदेश में इस तरह की शिकायतें आम हैं कि सहकारी समितियों द्वारा किसानों को दिए जाने वाले कर्ज की तुलना में उनके खातों में कुछ और रकम ही दिखा दी जाती है तथा भोले किसानों का शोषण होता आ रहा है।उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि इस तरह की घटना को देखते हुए लगता है कि अगर ईमानदारी से प्रदेश की तमाम सहकारी समितियों का ऑडिट कराया जाए तो अरबों का घोटाला सामने आ सकता है। 

उन्होंने सहकारी समितियों के कामकाज की जांच के लिए स्वतंत्र नियामक के गठन की मांग करते हुए कहा कि किसानों को शोषण से बचाने के लिए यही एक रास्ता है वर्ना अन्नदाता तबाह हो जाएगा। पहले ही केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों से किसान परेशान है ऊपर से सहकारिता के नाम पर इस तरह की लूट को रोकने का कोई इंतजाम नहीं है। उन्होंने  कहा कि धामी जीरो टॉलरेंस का ढोल पीटने से बाज आए और किसानों के साथ हो रहे इस तरह के अन्याय पर रोक लगाए।


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