कविता- जमाना जालिम है

 




आशीष तिवारी निर्मल 


बचकर रहना यारएजमाना जालिम है 
हो जाओ होशियारएजमाना जालिम है। 


अपनापनएभाईचारा खत्म हो चुका है 
है रिश्तों में व्यापारएजमाना जालिम है। 


दिन प्रति दिन देखो क्या खूब बढ़े हैं
लुच्चेएटुच्चेएझपटमारएजमाना जालिम है।


नारी सुरक्षा के दावे भी खोखले साबित
होती तेजाबी बौछारएजमाना जालिम है। 


रपट लिखाने कभी जो जाओ थाने 
रिश्वत मांगे थानेदारएजमाना जालिम है। 


न्यायएसत्यएनिष्ठाएईमान हुआ है बौना
भ्रष्टाचार ही शिष्टाचारएजमाना जालिम है। 


हो जरूरत यदि कभी धर्म रक्षा के लिए 
लो हाथ में तलवारएजमाना जालिम है।


 


लालगांव, जिला रीवा
मध्यप्रदेश। 
9399394911


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